गंगा का तन मैला, तुम्हारा मन मैला, कैसे भरेगा पुण्य का थैला!
. श्रीगोपाल ‘नारसन’ (मीडिया केयर नेटवर्क)
गंगा को मैला सब कर रहे हैं लेकिन इसकी नियमित सफाई हो, यह ध्यान किसी को नहीं है। कुम्भ के चलते आए दिन लाखों श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाकर अपने ‘पाप’ गंगा में धो रहे हैं लेकिन गंगा कितने पाप झेल पाएगी, इसकी फिक्र कोई नहीं कर रहा। हद तो यह है कि श्रद्धालु आस्था की डुबकी के साथ-साथ साबुन स्नान का भी प्रयास करते हैं। यहां तक कि अपने मैले कपड़ों और वाहनों तक को गंगा में धोने की धृष्टता अब सरेआम की जा रही है, जिससे गंगा दिन-प्रतिदिन मैली हो रही है।
गंगा की सफाई का दिखावा करने वाले तो बहुत हैं लेकिन सफाई के नाम पर बजट डकारकर चुप्पी साध लेने, सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए गंगा सफाई का नाटक करने से काम चलने वाला नहीं है। सरकार जहां गंगा का मैलापन दूर करने के लिए 1670 करोड़ रुपये खर्च करके बैठ गई, वहीं योग गुरू बाबा रामदेव भी अपने शिष्यों के साथ एक दिन गंगा की सांकेतिक सफाई करके चले गए और अगले ही पल से फिर गंगा में मैलापन छाने लगा।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि गंगा को मैलेपन से बचाने यानी प्रदूषण मुक्त रखने के लिए गंभीरता के साथ प्रयास क्यों नहीं किए जा रहे हैं? आज भी गंगा में शवों का विसर्जन, जली-अधजली लाशों का बहाव, मृतकों के कपड़ों का अर्पण, हवन की राख, धार्मिक कलैंडर, मूर्तियों आदि का डाला जाना लगातार जारी है। दूसरी ओर साबुन से स्नान कर गंगा को प्रदूषित करने की गलत आदत के साथ-साथ गंगा में कपड़े धोने, वाहन धोने, पॉलीथिन इत्यादि डालने से भी गंगा पर प्रदूषण का बोझ लगातार बढ़ रहा है।
‘कुम्भ में भविष्य’ नामक स्वयंसेवी संस्था ने जरूर पम्पलेट बंटवाकर व दीवारों पर चस्पां करके श्रद्धालुओं से गंगा की पवित्रता बचाने और प्रदूषित करने से रोकने की अपील की है। संस्था के अध्यक्ष दुर्गाशंकर भाटी प्रयासरत हैं कि हर की पौड़ी के निकट खड़खड़ी श्मशान घाट को शहर से बाहर स्थानांतरित किया जाए ताकि श्मशान से आने वाली गंदगी से गंगा की पवित्रता को बचाया जा सके।
गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने की मुहिम देश में सबसे पहले तत्काल प्रधानमंत्री स्व. श्री राजीव गांधी ने चलाई थी। उन्हीं के समय में ‘गंगा एक्शन प्लान’ शुरू कर 1984 से 1990 तक गंगा को प्रदूषण से मुक्त करने का निश्चय लिया गया था लेकिन यह प्लान कारगर सिद्ध नहीं हो सका। 452 करोड़ रुपये खर्च हो जाने के बाद भी जब ‘गंगा प्रदूषण नियंत्रण’ के कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आए तो मजबूरन सन् 2000 में इस योजना को बंद कर देना पड़ा।
अब फिर प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने गंगा एवं देश की अन्य प्रमुख नदियों को प्रदूषण से मुक्त करने की कवायद शुरू की है, जिसके लिए 2460 करोड़ रुपये की लागत से 763 योजनाएं स्वीकृत की गई हैं। इस ‘नेशनल कंजर्वेशन प्रोजेक्ट’ नामक योजना के तहत नदियों के प्रदूषण से बचाव के लिए 70 प्रतिशत राशि केन्द्र सरकार और 30 प्रतिशत संबंधित राज्य सरकारें खर्च करेंगी। यह योजना भी कितनी कारगर साबित हो पाएगी, यह तो अभी से नहीं कहा जा सकता लेकिन पुराने अनुभव तो यही बताते हैं कि इस तरह की अधिकांश योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़कर दम तोड़ देती हैं।
सबसे बड़ी जरूरत तो यही है कि केन्द्र एवं राज्य स्तर पर देश की नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए जहां ईमानदार पहल हो, वहीं स्वयंसेवी संस्थाओं को भी बिना किसी आर्थिक सहायता के गंगा सहित अन्य सभी नदियों का मैलापन दूर करने के लिए आगे आना चाहिए। मौजूदा हालात तो इतने बदतर हैं कि गंगा और यमुना का पानी आचमन तो दूर, स्नान योग्य भी नहीं रह गया है। ऐसे में हमारी आस्था कब तक इन नदियों की पवित्रता के प्रति टिकी रह सकेगी, यह सवाल हर किसी के कानों में गूंज रहा है।
स्वयं हरिद्वार स्थित गंगा में ही कई स्रोत ऐसे हैं, जो गंगा को निरन्तर मैला बना रहे हैं। यहां तक कि सीवर लाइन व गटरों तक का गंदा पानी मां गंगा की पवित्रता में जहर घोल रहा है। कम से कम मोक्षदायिनी मां गंगा की पवित्रता बहाल करने के लिए तो ईमानदार प्रयास हों, तभी पुण्य प्राप्ति की आस मां गंगा से की जा सकती है वरना गंगा का तन मैला, तुम्हारा मन मैला, फिर कैसे भरेगा पुण्य का थैला! (एम सी एन)
गंगा को मैला सब कर रहे हैं लेकिन इसकी नियमित सफाई हो, यह ध्यान किसी को नहीं है। कुम्भ के चलते आए दिन लाखों श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाकर अपने ‘पाप’ गंगा में धो रहे हैं लेकिन गंगा कितने पाप झेल पाएगी, इसकी फिक्र कोई नहीं कर रहा। हद तो यह है कि श्रद्धालु आस्था की डुबकी के साथ-साथ साबुन स्नान का भी प्रयास करते हैं। यहां तक कि अपने मैले कपड़ों और वाहनों तक को गंगा में धोने की धृष्टता अब सरेआम की जा रही है, जिससे गंगा दिन-प्रतिदिन मैली हो रही है।
गंगा की सफाई का दिखावा करने वाले तो बहुत हैं लेकिन सफाई के नाम पर बजट डकारकर चुप्पी साध लेने, सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए गंगा सफाई का नाटक करने से काम चलने वाला नहीं है। सरकार जहां गंगा का मैलापन दूर करने के लिए 1670 करोड़ रुपये खर्च करके बैठ गई, वहीं योग गुरू बाबा रामदेव भी अपने शिष्यों के साथ एक दिन गंगा की सांकेतिक सफाई करके चले गए और अगले ही पल से फिर गंगा में मैलापन छाने लगा।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि गंगा को मैलेपन से बचाने यानी प्रदूषण मुक्त रखने के लिए गंभीरता के साथ प्रयास क्यों नहीं किए जा रहे हैं? आज भी गंगा में शवों का विसर्जन, जली-अधजली लाशों का बहाव, मृतकों के कपड़ों का अर्पण, हवन की राख, धार्मिक कलैंडर, मूर्तियों आदि का डाला जाना लगातार जारी है। दूसरी ओर साबुन से स्नान कर गंगा को प्रदूषित करने की गलत आदत के साथ-साथ गंगा में कपड़े धोने, वाहन धोने, पॉलीथिन इत्यादि डालने से भी गंगा पर प्रदूषण का बोझ लगातार बढ़ रहा है।
‘कुम्भ में भविष्य’ नामक स्वयंसेवी संस्था ने जरूर पम्पलेट बंटवाकर व दीवारों पर चस्पां करके श्रद्धालुओं से गंगा की पवित्रता बचाने और प्रदूषित करने से रोकने की अपील की है। संस्था के अध्यक्ष दुर्गाशंकर भाटी प्रयासरत हैं कि हर की पौड़ी के निकट खड़खड़ी श्मशान घाट को शहर से बाहर स्थानांतरित किया जाए ताकि श्मशान से आने वाली गंदगी से गंगा की पवित्रता को बचाया जा सके।
गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने की मुहिम देश में सबसे पहले तत्काल प्रधानमंत्री स्व. श्री राजीव गांधी ने चलाई थी। उन्हीं के समय में ‘गंगा एक्शन प्लान’ शुरू कर 1984 से 1990 तक गंगा को प्रदूषण से मुक्त करने का निश्चय लिया गया था लेकिन यह प्लान कारगर सिद्ध नहीं हो सका। 452 करोड़ रुपये खर्च हो जाने के बाद भी जब ‘गंगा प्रदूषण नियंत्रण’ के कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आए तो मजबूरन सन् 2000 में इस योजना को बंद कर देना पड़ा।
अब फिर प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने गंगा एवं देश की अन्य प्रमुख नदियों को प्रदूषण से मुक्त करने की कवायद शुरू की है, जिसके लिए 2460 करोड़ रुपये की लागत से 763 योजनाएं स्वीकृत की गई हैं। इस ‘नेशनल कंजर्वेशन प्रोजेक्ट’ नामक योजना के तहत नदियों के प्रदूषण से बचाव के लिए 70 प्रतिशत राशि केन्द्र सरकार और 30 प्रतिशत संबंधित राज्य सरकारें खर्च करेंगी। यह योजना भी कितनी कारगर साबित हो पाएगी, यह तो अभी से नहीं कहा जा सकता लेकिन पुराने अनुभव तो यही बताते हैं कि इस तरह की अधिकांश योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़कर दम तोड़ देती हैं।
सबसे बड़ी जरूरत तो यही है कि केन्द्र एवं राज्य स्तर पर देश की नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए जहां ईमानदार पहल हो, वहीं स्वयंसेवी संस्थाओं को भी बिना किसी आर्थिक सहायता के गंगा सहित अन्य सभी नदियों का मैलापन दूर करने के लिए आगे आना चाहिए। मौजूदा हालात तो इतने बदतर हैं कि गंगा और यमुना का पानी आचमन तो दूर, स्नान योग्य भी नहीं रह गया है। ऐसे में हमारी आस्था कब तक इन नदियों की पवित्रता के प्रति टिकी रह सकेगी, यह सवाल हर किसी के कानों में गूंज रहा है।
स्वयं हरिद्वार स्थित गंगा में ही कई स्रोत ऐसे हैं, जो गंगा को निरन्तर मैला बना रहे हैं। यहां तक कि सीवर लाइन व गटरों तक का गंदा पानी मां गंगा की पवित्रता में जहर घोल रहा है। कम से कम मोक्षदायिनी मां गंगा की पवित्रता बहाल करने के लिए तो ईमानदार प्रयास हों, तभी पुण्य प्राप्ति की आस मां गंगा से की जा सकती है वरना गंगा का तन मैला, तुम्हारा मन मैला, फिर कैसे भरेगा पुण्य का थैला! (एम सी एन)
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