‘तीखे तेवर’ पुस्तक पर कुछ प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं की प्रतिक्रियाएं

  


तीखे तेवर

(25 विचारोत्तेजक निबंधों की 160 पृष्ठों की पुस्तक)

-- एक संजीदा पत्रकार होने के नाते योगेश गोयल हमेशा सामाजिक सरोकारों के साथ निकट से वाबस्ता रहे हैं। वह चिंतक भी हैं और आम आदमी की निजी अनुभूतियों को पहचानने वाली दृष्टि भी उनके पास है। उनकी इस पुस्तक का हर आलेख कुछ-न-कुछ कहता, शिक्षा अथवा नसीहत देते प्रतीत होता है। यह पुस्तक पढ़ने और संग्रह करने के योग्य है।

- अजीत समाचार (जालंधर)

-- पूरी किताब एक-एक ऐसे विचार बिन्दु को प्रदर्शित करती है, जिसमेें गोयल का रचना संसार सामाजिक समस्याओं के बीच एक ऐसी खिड़की की तलाश करता है, जिससे कुरीतियों, गिरते सामाजिक सरोकारों और बुराईयों पर बराबर प्रहार होता है।
- दैनिक हमारा महानगर (मुम्बई एवं नई दिल्ली) (27.12.2009)

-- लेखक का रचनात्मक कौशल लाजवाब है। पुस्तक में संग्रहीत एक-एक आलेख अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- दैनिक पंजाब केसरी (दिल्ली) (29.1.2010)

-- रचनात्मक पत्रकारिता के पक्षधर, पोषक और सजग प्रहरी श्री गोयल ने संक्रमण के दौर से अपनी बिरादरी पर भी अनेक सवालिया निशान उठाते हुए नैतिक दायित्वबोध कराया है। पुस्तक के सभी निबंध विचारोत्तेजक हैं तथा सामाजिक व राष्ट्रीय सरोकारों से जुड़े हैं। इन आलेखों की भाषा पुस्तक के शीर्षक अनुरूप तीखी है।आवरण विषयानुरूप व प्रभावी है।
- दैनिक ट्रिब्यून (चण्डीगढ़) (7.3.2010)

-- पुस्तक के सभी निबंध विचारोत्तेजक हैं तथा सामाजिक व राष्ट्रीय सरोकारों से जुड़े हैं। इन आलेखों की भाषा पुस्तक के शीर्षक के अनुरूप तीखी है। आवरण विषयानुरूप व प्रभावी है। यह पुस्तक एक ओर जहां वैचारिक महायज्ञ में प्रेरक आहुति का काम करेगी, वहीं लेखक का यह प्रयास सामाजिक अभियंताओं तथा शोधार्थियों के लिए शोध का विषय बनकर अपनी विशिष्ट पहचान बनाएगा, ऐसी आशा है।
- दैनिक स्वतंत्र वार्ता (हैदराबाद) (27.6.2010)

-- यह एक शाश्वत एवं उपादेय कृति है, जिसको साहित्य एवं पत्रकारिता जगत में ही नहीं अपितु सामाजिक सरोकारों से जुड़े सभी सहृदयजनों में समादृत किया जाना चाहिए।
- शुभ तारिका (अम्बाला छावनी) (जनवरी 2010)

-- योगेश कुमार गोयल लिखित ‘तीखे तेवर’ सामाजिक अपघातों को बेनकाब करने का एक सार्थक प्रयास है।
- यू.एस.एम. पत्रिका (गाजियाबाद) (जनवरी 2010)

-- पुस्तक आवरण, जिल्द, सम्पूर्ण सामग्री, भूमिका से लेकर लेखक के परिचय तक बहुत ही श्रेष्ठ बन पड़ी है। यह सम्पादकों एवं पत्रकारिता जगत में ही पढ़ने योग्य नहीं अपितु आज के प्रत्येक व्यक्ति को झकझोरने के लिए ऐसी पुस्तकों की आवश्यकता है। पत्रकारिता के चमचागिरी युग में आज ऐसी ही पत्रकारिता की आवश्यकता है।
- उर्मि कृष्ण, निदेशक, कहानी लेखन महाविद्यालय

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