बदलती जलवायु से निपटना सिखाएंगे पौधे


ब्रिटेन की दो शोध परिषदों ‘जैव प्रौद्योगिकी तथा जीव विज्ञान शोध परिषद’ (बीबीएसआरसी) और ‘प्राकृतिक पर्यावरण शोध परिषद’ द्वारा अनुदानित वैज्ञानिक यह अध्ययन कर रहे हैं कि पौधे कैसे प्राकृतिक तौर पर बदलती जलवायु के साथ अपनी अनुकूलता बैठा लेते हैं। उन्होंने एक ऐसी खोज की है, जो हमें नई किस्म की फसलों को पैदा करने में मदद कर सकती है, जो फसलें बदलती जलवायु में भी खुद को बचाए रख सकें। इस खोज का महत्व इस तथ्य में निहित है कि यह प्रदर्शित करता है कि कैसे एक प्रजाति कम अवधि में विभिन्न जलवायु परिवर्तनों के प्रति विभिन्न किस्म की प्रतिक्रियाएं विकसित करने में सक्षम होती हैं। ‘जॉन आईनेस संेटर’ के शोधकर्ता यह पता लगाने में जुटे हैं कि पौधे किस तरीके से सर्दियों की ठंड को इस्तेमाल कर फूल पैदा कर सकते हैं, जिसके लिए वसंत की गर्माहट जरूरी होती है। यह प्रक्रिया, जिसे ‘वर्नलाइजेशन’ कहते हैं, एक ही पौध प्रजाति के भीतर स्थानीय जलवायु के मुताबिक भिन्न हो सकती है। यह पाया गया है कि एक विशेष आनुवंशिक सूत्र एफएलसी ही सर्दियों में फूलों के पैदा होने में विलम्ब की वजह है। शोध टीम ने यह खोज निकाला कि सर्दियां एफएलसी को निष्क्रिय कर देती हैं और वसंत इसे सक्रिय कर देता है। ब्रिटेन जैसे देश में पौधों को एफएलसी निष्क्रिय करने के लिए मात्र चार हफ्तों की ठंड ही चाहिए होती है। शोध टीम की प्रमुख प्रो. कैरोलीन डीन के अनुसार किस तरीके से एडिनबर्ग और उत्तरी स्केनडीनेविया में पतझड़ और ठंड के दौरान एक ओर जहां एफएलसी का स्तर समान रहा, वहीं उसके निष्क्रिय होने में लगने वाला समय भिन्न रहा। वह कहती हैं, ‘‘यह जानना दिलचस्प होगा कि पौधे किस तरह विभिन्न जलवायु के मुताबिक खुद को अनुकूल बना लेते हैं, जिसकी मदद से हम ग्लोबल वार्मिंग के दौर में ऐसी खाद्य फसलें उगा सकें, जो उसके अनुकूल हों।’ञ बीबीएसआरसी की मुख्य कार्यकारी प्रो. जुलिया गुडफेलो ने भी उपर्युक्त आवश्यकता पर बल दिया है। जेआईसी नॉर्विश शोध पार्क मंे स्थित है और उसे बीबीएसआरसी से अनुदान मिलता है। गौरतलब है कि ब्रिटेन जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी स्थान रखता है और यूरोप की सार्वजनिक जैव प्रौद्योगिकी कम्पनियांे में 75 फीसदी ब्रिटेन की हैं।
प्रस्तुति: योगेश कुमार गोयल

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