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Showing posts from 2022

सदैव महिला अधिकारों के लिए संघर्षरत रही सरोजिनी नायडू

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  राष्ट्रीय महिला दिवस/ सरोजिनी नायडू की 143वीं जयंती पर विशेष #SarojiniNaiduBirthAnniversary

इंटरनेट जहां अब हर घर की जरूरत बन गया है, वहीं इससे जुड़े खतरे भी निरन्तर बढ़ रहे हैं। पढ़ें इसी से संबंधित लेख

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पंजाब केसरी के सम्पादकीय पेज पर पढ़ें बसंत पंचमी पर मेरा यह लेख

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साहित्य और संगीत प्रेमियों के लिए बसंत पंचमी का है विशेष महत्व

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योगेश कुमार गोयल देशभर में माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी धूमधाम से वसंत पंचमी के रूप में मनाई जाती है। साहित्य और संगीत प्रेमियों के लिए तो इसका विशेष महत्व है, क्योंकि यह ज्ञान और वाणी की देवी सरस्वती की पूजा का पवित्र पर्व माना गया है। बच्चों को इसी दिन से बोलना या लिखना सिखाना शुभ माना गया है। संगीतकार इस दिन अपने वाद्य यंत्रों की पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन विद्या और बुद्धि की देवी मां सरस्वती अपने हाथों में वीणा, पुस्तक व माला लिए अवतरित हुईं थी। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में इस दिन लोग विद्या, बुद्धि और वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा-आराधना करके अपने जीवन से अज्ञानता के अंधकार को दूर करने की कामना करते हैं। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने वसंत पंचमी के दिन ही प्रथम बार देवी सरस्वती की आराधना की थी और कहा था कि इस दिन को मां सरस्वती के आराधना पर्व के रूप में मनाया जाएगा। प्राचीन काल में वसंत पंचमी को प्रेम के प्रतीक पर्व के रूप में बसंतोत्सव, मदनोत्सव, कामोत्सव अथवा कामदेव पर्व के रूप में मनाए जाने का भी उल्लेख मिलता है। इस संबंध में मान्यता है कि इस

स्पष्टवादिता और सत्यनिष्ठा की मिसाल थे गांधी जी

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कैसे बना भारत का संविधान? जानने के लिए पढ़ें यह विशेष लेख

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#IndianConstitution #गणतंत्र_दिवस #republicdayindia #Republicday2022 #भारत_का_संविधान  

भारतीय संविधान से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

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- श्वेता गोयल - सर्वप्रथम सन् 1895 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने मांग की थी कि अंग्रेजों के अधीनस्थ भारतवर्ष का संविधान स्वयं भारतीयों द्वारा ही बनाया जाना चाहिए लेकिन तिलक के सहयोगियों द्वारा भारत के लिए स्वराज्य विधेयक के प्रारूप को, जिसमें पहली बार भारत के लिए स्वतंत्र संविधान सभा के गठन की मांग की गई थी, ब्रिटिश सरकार द्वारा ठुकरा दिया गया था। - 1922 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मांग की कि भारत का राजनैतिक भाग्य भारतीय स्वयं बनाएंगे। 1924 में पं. मोतीलाल नेहरू ने संविधान सभा के गठन की फिर मांग की लेकिन अंग्रेजों द्वारा उनकी मांग को भी ठुकरा दिया गया। तब से संविधान सभा के गठन की मांग लगातार उठती रही लेकिन अंग्रेजों द्वारा उसे हर बार ठुकराया जाता रहा। - 1939 में कांग्रेस अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें कहा गया कि स्वतंत्र देश के संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा ही एकमात्र उपाय है और अंततः 1940 में ब्रिटिश सरकार ने इस मांग को मान लिया कि भारत का संविधान भारत के लोगों द्वारा ही बनाया जाए। - 1942 में क्रिप्स कमीशन ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें कहा गया कि

आखिर 26 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है ‘गणतंत्र दिवस’?

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  - योगेश कुमार गोयल देश की स्वतंत्रता के इतिहास में 26 जनवरी का स्थान कितना महत्वपूर्ण रहा, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में 26 जनवरी को ही सदैव स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया था लेकिन 15 अगस्त 1947 को देश के स्वतंत्र होने के बाद 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाए जाने के बजाय इसका इतिहास भारतीय संविधान से जुड़ गया और यह भारतवर्ष का एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्व बन गया। 26 जनवरी 1950 को भारत के नए संविधान की स्थापना के बाद प्रतिवर्ष इसी तिथि को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाए जाने की परम्परा आरंभ हुई क्योंकि देश की आजादी के बाद सही मायनों में इसी दिन से भारत प्रभुत्व सम्पन्न प्रजातंत्रात्मक गणराज्य बना था। भारत का संविधान 26 जनवरी 1949 को अंगीकृत किया गया था और कुछ उपबंध तुरंत प्रभाव से लागू कर दिए गए थे लेकिन संविधान का मुख्य भाग 26 जनवरी 1950 को ही लागू किया गया, इसीलिए इस तारीख को संविधान के ‘प्रारंभ की तारीख’ भी कहा जाता है और यही वजह थी कि 26 जनवरी को ही ‘गणतंत्र दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा। 26 जनवरी को ही गणतंत्

बेटियों के लिए हमें ही बनाना होगा भयमुक्त समाज

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- योगेश कुमार गोयल देश की बालिकाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने तथा समाज में बालिकाओं के साथ होने वाले भेदभाव के बारे में बालिकाओं के साथ-साथ समस्त देशवासियों को भी जागरूक करने के उ्देश्य से प्रतिवर्ष 24 जनवरी को ‘राष्ट्रीय बालिका दिवस’ मनाया जाता है। परिवारों में बेटा-बेटी के बीच भेदभाव और बेटियों के साथ परिवार में प्रायः होने वाले अत्याचारों के खिलाफ समाज को जागरूक करने के लिए देश की आजादी के बाद से ही प्रयास होते रहे हैं। हालांकि एक समय ऐसा था, जब अधिसंख्य परिवारों में बेटी को परिवार पर बोझ समझा जाता था और इसीलिए बहुत सी जगहों पर तो बेटियों को जन्म लेने से पहले ही कोख में ही मार दिया जाता था। यही कारण था कि बहुत लंबे अरसे तक लिंगानुपात बुरी तरह गड़बड़ाया रहा। अगर बेटी का जन्म हो भी जाता था तो उसका बाल विवाह कराकर उसकी जिम्मेदारी से मुक्ति पाने की सोच समाज में समायी थी। आजादी के बाद से बेटियों के प्रति समाज की इस सोच को बदलने और बेटियों को आत्मनिर्भर बनाकर देश के प्रथम पायदान पर लाने के लिए अनेक योजनाएं बनाई गई और कानून लागू किए गए। उसी का नतीजा है कि अब बालिकाएं भी हर क्षेत

राष्ट्रीय बालिका दिवस पर विशेष लेख

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  - योगेश कुमार गोयल देश की बालिकाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने तथा समाज में बालिकाओं के साथ होने वाले भेदभाव के बारे में बालिकाओं के साथ-साथ समस्त देशवासियों को भी जागरूक करने के उ्देश्य से प्रतिवर्ष 24 जनवरी को ‘राष्ट्रीय बालिका दिवस’ मनाया जाता है। परिवारों में बेटा-बेटी के बीच भेदभाव और बेटियों के साथ परिवार में प्रायः होने वाले अत्याचारों के खिलाफ समाज को जागरूक करने के लिए देश की आजादी के बाद से ही प्रयास होते रहे हैं। हालांकि एक समय ऐसा था, जब अधिसंख्य परिवारों में बेटी को परिवार पर बोझ समझा जाता था और इसीलिए बहुत सी जगहों पर तो बेटियों को जन्म लेने से पहले ही कोख में ही मार दिया जाता था। यही कारण था कि बहुत लंबे अरसे तक लिंगानुपात बुरी तरह गड़बड़ाया रहा। अगर बेटी का जन्म हो भी जाता था तो उसका बाल विवाह कराकर उसकी जिम्मेदारी से मुक्ति पाने की सोच समाज में समायी थी। आजादी के बाद से बेटियों के प्रति समाज की इस सोच को बदलने और बेटियों को आत्मनिर्भर बनाकर देश के प्रथम पायदान पर लाने के लिए अनेक योजनाएं बनाई गई और कानून लागू किए गए। उसी का नतीजा है कि अब बालिकाएं भी हर क्ष

जब नेताजी को हो गया था 22 वर्षीया एमिली से प्यार

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  - श्वेता गोयल नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रेम कहानी काफी दिलचस्प रही। फरवरी 1932 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान जेल में बंद नेताजी की तबीयत खराब होने लगी थी, जिसे देखते हुए ब्रिटिश सरकार इलाज के लिए उन्हें यूरोप भेजने पर सहमत हो गई थी। विएना में सुभाष चंद्र बोस के इलाज के दौरान एक यूरोपीय प्रकाशक ने उन्हें एक किताब ‘द इंडियन स्ट्रगल’ लिखने की जिम्मेदारी सौंपी। सुभाष बाबू ने यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी स्वीकार तो कर ली लेकिन इसे पूरा करने के लिए उन्हें एक ऐसे सहयोगी की जरूरत महसूस हुई, जिसे अच्छी अंग्रेजी और टाइपिंग आती हो। सुभाष चंद्र बोस के एक दोस्त थे डा. माथुर, जिन्होंने उन्हें दो ऐसे लोगों के बारे में बताया। नेताजी द्वारा इंटरव्यू के दौरान पहले को रिजेक्ट कर दिए जाने के बाद दूसरे उम्मीदवार को बुलाया गया। दूसरा उम्मीदवार था 26 जनवरी 1910 को ऑस्ट्रिया के एक कैथोलिक परिवार में जन्मी 22 वर्षीया खूबसूरत युवती एमिली शेंकल, जिसके पिता एक प्रसिद्ध पशु चिकित्सक थे। सुभाष बाबू उससे बहुत प्रभावित हुए और जून 1934 में एमिली ने नेताजी के साथ काम करना शुरू कर दिया। एमिली से मुलाकात के बाद सुभाष

भुलाये नहीं भूलेगी नेताजी सुभाष की स्मृति

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  - योगेश कुमार गोयल 23 जनवरी 1897 की उस अनुपम बेला को भला कौन भुला सकता है, जब उड़ीसा के कटक शहर में एक बंगाली परिवार में नामी वकील जानकी दास बोस के घर भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में चमकने वाला एक ऐसा वीर योद्धा जन्मा था, जिसे पूरी दुनिया ने नेताजी के नाम से जाना और जिसने अंग्रेजी सत्ता की ईंट से ईंट बजाने में कोई-कसर नहीं छोड़ी। जानकीनाथ और प्रभावती की कुल 14 संतानें थी, जिनमें 6 बेटियां और 8 बेटे थे। सुभाष चंद्र उनकी नौवीं संतान और पांचवें बेटे थे। सुभाष को अपने सभी भाइयों में से सर्वाधिक लगाव शरदचंद्र से था। बचपन से ही कुशाग्र, निडर, किसी भी तरह का अन्याय व अत्याचार सहन न करने वाले तथा अपनी बात पूरी दबंगता के साथ कहने वाले सुभाष ने मैट्रिक की परीक्षा 1913 में कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की। एक बार कॉलेज में एक प्रोफैसर द्वारा बार-बार भारतीयों की खिल्ली उड़ाए जाने और भारतीयों के बारे में अपमानजनक बातें कहने पर सुभाष को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने कक्षा में ही उस प्रोफैसर के मुंह पर तमाचा जड़ दिया, जिसके चलते उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया था