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Showing posts from August, 2010
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6 टांगें होने पर भी चल नहीं सकते ड्रैगनफ्लाई

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जीव-जन्तुओं की अनोखी दुनिया - योगेश कुमार गोयल ‘ड्रैगनफ्लाई’, जिन्हें ‘चिऊरा’ तथा ‘व्याध पतंगा’ के नाम से भी जाना जाता है, वास्तव में इनका अस्तित्व धरती पर 30 करोड़ साल से भी ज्यादा पुराना माना जाता है और ये विश्व में लगभग हर जगह पाए जाते हैं। चिऊरा हवा में आसानी से उड़ तो सकते हैं मगर अपनी 6 टांगें होने के बावजूद जमीन पर चल नहीं सकते। मजे की बात यह कि वृक्षों के तनों पर तो चिऊरा चल लेते हैं और इन पर आसानी से बैठ भी जाते हैं मगर जमीन पर नहीं चल सकते। दरअसल इनकी टांगें आगे की ओर मुड़ी होती हैं और उनकी टांगों तथा छाती की बनावट के कारण ही ऐसा होता है। चिऊरा मनुष्यों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। ये कीटों तथा छोटी मछलियों का भोजन करते हैं। चिऊरा की यह विशेषता होती है कि ये उड़ते हुए ही कीटों को दबोच लेते हैं। दरअसल इनकी टांगों की बनावट एक टोकरी जैसी होती है, जिसमें उड़ते हुए कीट आसानी से फंस जाते हैं और फिर चिऊरा उन कीटों को अपने मुंह की ओर लाकर निगल जाते हैं। वायुयानों का डिजाइन बनाने वाले वैज्ञानिक तो चिऊरा की शारीरिक संरचना का खासतौर से अध्ययन कर रहे हैं क्योंकि चिऊरा जिस तरह से हवा मे

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गर्भवती महिलाओं के लिए उचित नहीं कॉफी का सेवन

कॉफी पीने के फायदे और नुकसान के बारे में कुछ समय से स्वास्थ्य विशेषज्ञों के बीच बहस छिड़ी है। कोई इसे स्वास्थ्य की दृष्टि से फायदेमंद बताता है तो कोई इसके दोष गिनवाता नहीं थकता लेकिन कुछ वैज्ञानिक अनुसंधनों ने इस बात की पुष्टि की है कि कॉफी पीने से मस्तिष्क ज्वर, पथरी, पार्किन्सन रोग आदि बीमारियों से बचाव होता है तथा इसके सेवन से शरीर को पर्याप्त ऊर्जा मिलती है किन्तु इसके साथ-साथ ज्यादा कॉफी पीने से आर्थराइटिस का खतरा भी बढ़ जाता है। अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन का तो यहां तक कहना है कि कॉफी न पीने वाले व्यक्तियों में पार्किन्सन रोग होने का खतरा पांच गुना अधिक होता है। हालांकि यह सही है कि कॉफी में कैफीन की काफी मात्रा होती है और इसी की वजह से कॉफी पीने के बाद शरीर में चुस्ती-स्फूर्ति का संचार हो जाता है तथा नब्ज तेज हो जाती है, रक्तचाप भी बढ़ जाता है। संभवतः इसी कारण डॉक्टर निम्न रक्तचाप के रोगियों को कॉफी पीने की सलाह भी देते हैं किन्तु कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि कॉफी में कैफीन की अधिक मात्रा के कारण इसकी लत व्यक्ति को बहुत जल्दी लग जाती है और किसी भी व्यक्ति के एक बार कॉफी क

रंग बिरंगी दुनिया

बेतुके शोधों पर भी एक शोध पश्चिमी देशों में हर साल विभिन्न विषयों से संबंधित सैंकड़ों शोध किए जाते हैं। आए दिन कोई न कोई नया शोध होता है, जिनमें से कई शोध तो ऐसे भी होते हैं, जिनका कोई सिर-पैर नहीं होता। मजे की बात यह है कि आए दिन होने वाले इन शोधों पर ही लंदन में एक शोध किया गया, जिसमें पाया गया कि तरह-तरह की बातों को लेकर किए जाने वाले इन बेतुके शोधों पर लाखों-करोड़ों रुपये बर्बाद कर दिए जाते हैं, जिनका नतीजा कुछ नहीं निकलता। शोधकर्ताओं के मुताबिक बेतुकी बातों पर किए जाने वाले इन शोधों पर अनाप-शनाप खर्च किया जाता है। लंदन की ‘बाईजेयर’ नामक पत्रिका द्वारा रिसर्च प्रोजेक्टों पर कराए गए इस अनोखे शोध से पता चला कि सिर्फ ब्रिटेन में ही बहुत से हास्यास्पद विषयों पर किए जाने वाले शोधों पर हर साल लाखों पौंड बर्बाद कर दिए जाते हैं। बिजली की चोरी पकड़ी गई 60 साल बाद भारत में तो आज लगभग हर गली-मुहल्ले में बिजली चोरी की घटनाएं होती ही हैं और बिजली विभाग लाख कोशिशों के बाद भी बिजली चोरों पर लगाम कसने में नाकामयाब ही रहता है क्योंकि बिजली चोरी के अधिकांश मामलों में बिजली विभाग के कर्मचारियों की

नर के प्रति क्यों आकर्षित होती हैं मादाएं?

अक्सर देखा गया है कि खूबसूरत महिलाएं अपने से कम बुद्धिमान और कम आकर्षक पुरूषों पर भी मर मिटती हैं। इतिहास गवाह है कि कितनी ही नामीगिरामी महिलाओं ने अपने से बहुत ‘फीके’ पुरूषों के साथ विवाह रचाया पर इस रहस्य को कोई नहीं जान पाया कि आखिर ऐसा क्यों होता है कि अधिकांश आकर्षक एवं खूबसूरत महिलाएं बेवकूफ पुरूषों को ही पसंद करती हैं। खैर, ‘गपीज’ नामक मछलियों ने इस रहस्यमय पहेली को सुलझा दिया है। दरअसल वैज्ञानिकों ने गपीज नामक मछलियों में ‘मेट कापिंग’ जैसी प्रवृत्ति पाई है। ये इस तरह की पहली मछलियां हैं, जिनमें इस प्रकार की प्रवृत्ति स्पष्ट देखी गई है। इस प्रजाति की मछलियों में मादा मछली ऐसी नर मछली को ज्यादा पसंद करती हैं, जो अन्य मादा मछलियों में भी लोकप्रिय हो और करीब-करीब ऐसा ही आकर्षण महिलाओं में भी देखा जाता रहा है। अमेरिका में एक अध्ययन के दौरान मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए गए सर्वेक्षण में उन्होंने 60 पुरूषों और 74 महिलाओं को विपरीत लिंगी अजनबियों की तस्वीरें दिखाई, साथ ही उन्हें यह जानकारी भी दी गई कि दूसरे लोगों को भी वे पसंद थे अथवा नहीं। इसके बाद सभी से अलग-अलग यह पूछा गया कि वे इन अ

हैल्थ अपडेट

बीमारियों पर नजर रखना भी है जरूरी विशेषज्ञों की चेतावनी के बावजूद अक्सर होता यह है कि देखते ही देखते कोई महामारी फैल जाती है और फिर कुछ ही समय में हजारों जिन्दगियां निगल जाती है। हो सकता है कि आने वाले समय में फिर से ‘सार्स’ का संक्रमण फैल जाए, मंकीपॉक्स और फ्लू के नए रूप फिर से दुनिया को डराने लगें या ऐसी अजीबोगरीब बीमारियां ही दुनिया को अपनी चपेट में ले लें, जिनका हमने कभी नाम भी न सुना हो। दरअसल इसका कारण यह है कि दुनियाभर में ऐसा कोई तंत्र ही मौजूद नहीं है, जो बीमारियों की जन्मस्थली पर ही उन्हें पकड़ने में सक्षम हो। हर साल दुनिया में फैलने वाली महामारियां दुनिया में इतने लोगों को मार देती हैं, जितने युद्ध के कारण भी नहीं मरते। इसके बावजूद युद्ध और उसकी तैयारियों पर किया जाने वाला खर्च तो जारी है लेकिन विश्व स्तर पर बीमारियों के खिलाफ लड़ने वाली संस्था ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ का बजट उस अनुपात में नहीं बढ़ता। अकेले ‘सीआईए’ पर ही जितना खर्च एक साल में किया जाता है, अगर उसका आधा भी विश्व स्वास्थ्य संगठन को मिल सके तो पता नहीं, कितने लोग असमय काल के गाल में समाने से बच जाएं। इसका प्रमुख

मानें या न मानें यह सच है

‘सिक बिल्डिंग सिंड्रोम’ का खतरा कम करती हैं अल्ट्रावायलेट किरणें अल्ट्रावायलेट किरणों को सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जाता लेकिन एक अनुसंधान में कनाडा के वैज्ञानिकों ने पाया है कि अल्ट्रावायलेट किरणें ‘सिक बिल्डिंग सिंड्रोम’ का खतरा कम कर देती हैं। सिक बिल्डिंग सिंड्रोम एक व्यापक शब्द है, जो यह उस घटना के लिए प्रयुक्त किया जाता है, जब किसी कार्यस्थल में पाए जाने वाले किसी खास पदार्थ, रसायन, बैक्टीरिया, वायरस या फंगी के कारण उस बिल्डिंग या ऑफिस में कार्यरत कर्मचारी बीमार हो जाएं। सिक बिल्डिंग सिंड्रोम की आशंका उन बिल्डिंग्स में अधिक होती है, जिन्हें ऊर्जा की बचत के लिए एयरटाइट कर दिया जाता है। कनाडा की मैक्गिल यूनिवर्सिटी में मांट्रियल चेस्ट इंस्टीच्यूट में मेडिसन के प्रो. डा. डिक मेंजाइस और उनके सहयोगियों ने ऐसे ही एक अनुसंधान में पाया है कि यदि बड़ी बिल्डिंग्स के वेंटीलेशन सिस्टम में अल्ट्रावायलेट प्रकाश पैदा कर दिया जाए तो इससे सिक बिल्डिंग सिंड्रोम का खतरा काफी कम हो जाता है। इसकी वजह यह है कि वेंटीलेशन सिस्टम के एयरकंडीशनर ही वह जगह होती है, जहां ज्यादातर बैक्टीरिया, वायरस या फंगी

कुछ रसोईघर से

बनाइए-खिलाइए स्वादिष्ट आलू रोल सामग्री:- आलू एक किलो, बेसन 2 बड़े चम्मच, अरारोट 2 छोटे चम्मच, पिसी हुई लाल मिर्च 1 छोटा चम्मच, जीरा एक छोटा चम्मच, एक छोटा चम्मच नींबू का रस, 8-10 हरी मिर्च बारीक कटी हुई, थोड़ी सी अजवायन, थोड़ी सी अदरक बारीक कसी हुई, थोड़ा सा हरा ध्निया, चुटकी भर हींग, 4 पीस ब्रैड, स्वादानुसार नमक, 4 बड़े चम्मच घी। बनाने की विधि:- सबसे पहले आलुओं को उबालें और अब इन्हें कस लें। अब इसमें अरारोट तथा बेसन डालकर थोड़ा पानी मिलाकर मथें। इस मिश्रण में हरा ध्निया, हरी मिर्च, अदरक, अजवायन, नींबू का रस तथा नमक व मिर्च मिलाएं। पानी में चुटकी भर हींग मिलाकर उसमें ब्रैड को अच्छी तरह भिगो लें और कुछ देर बाद इन्हें निचोड़कर मिश्रण में मिला दें। अब हाथ पर थोड़ा सा घी लगाएं और इस मिश्रण के रोल बनाएं। कड़ाही में घी गर्म करके इन्हें सुनहरा रंग होने तक तलें। अब इन्हें धनिये की चटनी अथवा सॉस के साथ गर्मागर्म सर्व करें। वेजिटेबल मशरूम आमलेट सामग्री:- बारीक कटे हुए 100 ग्राम मशरूम, बेसन 200 ग्राम, बारीक कटे हुए दो प्याज, हरा धनिया, सूजी तीन बड़े चम्मच, दही एक बड़ा चम्मच, नमक स्वादानुसार, गर्म मसाल

कभी देखी है ऐसी दाढ़ी!

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यदि पाना चाहें इंटरव्यू में सफलता

कैरियर मार्गदर्शन - योगेश कुमार गोयल - रोजगार के हर क्षेत्र में आज जबरदस्त प्रतिस्पर्द्धा है। हर छोटी-बड़ी नौकरी के लिए इंटरव्यू रूपी बाधा को पार करना बहुत जरूरी हो गया है। एक पद के लिए भी आज हजारों की संख्या में उम्मीदवार होते हैं, इसलिए या तो लिखित परीक्षा के आधार पर परीक्षा में उत्तीर्ण युवाओं को ही इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है या फिर चयनकर्ता सभी युवाओं के बायोडाटा के आधार पर ही उनमें से कुछ चुनिंदा युवाओं को इंटरव्यू के लिए आमंत्रित करते हैं। इसलिए आपके पास भी किसी इंटरव्यू के लिए बुलावा आया है तो इसका अर्थ है कि आपमें उन्हें कोई तो ऐसी खासियत नजर आई है, जिसकी बदौलत उन्होंने आपको खुद को साबित करने का मौका दिया है। अब यह आप पर निर्भर है कि आप उनकी कसौटी पर किस हद तक खरे उतर पाते हैं। किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में लिखित परीक्षा में सफलता पाने के उपरांत भी इंटरव्यू के आधार पर ही अंतिम चयन होता है। आपको बहुत से युवा ऐसे भी मिलेंगे, जो तमाम योग्यताओं और बड़ी-बड़ी डिग्रियां होने के बाद भी इंटरव्यू में सफलता प्राप्त नहीं कर पाते और लिहाजा छोटे-छोटे दफ्तरों में ही घिसटते रहने को मजबूर

व्यंग्य: रेलवे प्लेटफॉर्म पर कटी जेब

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