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Showing posts from May, 2010

स्वास्थ्य चर्चा : औषधीय गुणों की खान रसीला आम

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-- योगेश कुमार गोयल (मीडिया केयर नेटवर्क) गर्मियों में जगह-जगह पर मीठे और रसीले आमों को देखकर किसका दिल नहीं ललचाता। हालांकि अधिकांश लोग इसके उम्दा स्वाद का मजा लेने के लिए आम का सेवन करते हैं लेकिन अपने उम्दा स्वाद के साथ-साथ आम अनेक बीमारियों के उपचार और उनकी रोकथाम में भी उपयोग किया जाता है। यहां तक कि आम की गुठलियों की गिरी, जिसे अक्सर बेकार समझकर आम खाने के बाद कूड़े में फैंक दिया जाता है, भी काफी उपयोगी होती है। कुछ अनुसंधानों के बाद यह बात सामने आई है कि आम की 0.381 टन गिरी में जितना प्रोटीन होता है, उतना ही प्रोटीन 3.19 टन ज्वार अथवा जौ से या फिर 3 टन जई से अथवा 3.99 टन मक्का से मिलता है। इसके अलावा आम की गिरी में स्टार्च, आयोडीन, वसीय अम्ल, कच्चे रेशे तथा टैनिन भी पाए जाते हैं। हालांकि टैनिन से पाचन शक्ति पर कुछ असर पड़ता है लेकिन वैज्ञानिकों ने इसका भी इलाज ढ़ूंढ़ निकाला है। वैज्ञानिकों के अनुसार यदि थोड़ी मात्रा में पोटेशियम हाइड्रोक्साइड और सोडियम कार्बोनेट मिले पानी में आम की गिरी के आटे को 80 डिग्री तापमान पर करीब 20 मिनट तक भिगोया जाए तो इसमें टैनिन की मात्रा तो काफी कम ह

खोज खबर: डिजिटल पैन से होगा इलैक्ट्रॉनिक लेखन

प्रस्तुति: योगेश कुमार गोयल (मीडिया एंटरटेनमेंट फीचर्स) कम्प्यूटर उद्योग का पिछले काफी समय से यही प्रमुख लक्ष्य रहा है कि हाथ से लिखे शब्दों को पढ़ने में समर्थ कोई विश्वसनीय सॉफ्टवेयर विकसित किया जा सके। यह नई तकनीक हालांकि हमारे अपठनीय घसीट लेखन को भी डिजिटल दुनिया की मुख्यधारा में ले आएगी लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि कम्प्यूटरों के ‘की बोर्ड’ की उपयोगिता ही समाप्त हो जाएगी। जहां तक लिखने का सवाल है, कलम और कागज को न तो कोई भी उपकरण अब तक मात दे सका है और न ही दे सकता है। हस्तलिखित सामग्री को डिजिटल डाटा के कम्प्यूटर नहीं बदल पाए लेकिन अब नया सॉफ्टवेयर, बेहतर हार्डवेयर और हाथ में पकड़े जा सकने वाले उपकरणों की सफलता ने कम्प्यूटर निर्माण करने वाली कम्पनियों को ‘इलैक्ट्रॉनिक लेखन’ पर पुनर्विचार करने को विवश कर दिया है। इस तरह की खोजों को ‘डिजिटल इंक’ के रूप में जाना जाता है। इनमें सबसे अच्छी मशीन आई बी एम की ‘थिंक पैड ट्रांसनोट’ है। हालांकि ट्रांसनोट हस्तलेखन को पढ़ने की कोशिश नहीं करता और न ही उसे कम्प्यूटर में दर्ज करता है लेकिन यह आपकी आड़ी-तिरछी लिखावट की तस्वीर खींच लेता है, जिसे कम्प्

खोज खबर: बीमारियां पैदा करने वाले जीवाणुओं की पहचान करेगी मशीन

प्रस्तुति: योगेश कुमार गोयल (मीडिया एंटरटेनमेंट फीचर्स) तरह-तरह की बीमारियां पैदा करने वाले रोगाणुओं की मदद से बीमारियों की दवा बनाने के प्रयासों में दुनिया भर के वैज्ञानिक जुटे हैं। इसके अलावा किसी न किसी बीमारी के इलाज में कामयाब हो सकने योग्य लाखों रासायनिक अणुओं को परखने, उन्हें छांटकर अलग करने तथा उनसे दवा तैयार करने के प्रयोग भी चल रहे हैं। जाहिर है कि यह काम बहुत पेचीदा है और नए उपकरणों तथा नए सॉफ्टवेयर के बिना इसे कर पाना करीब-करीब असंभव सा है लेकिन उत्तरी इंग्लैंड में यार्कशायर स्थित ‘द डोन विटले’ नामक साइंटिफिक कम्पनी जीवाणुओं के अध्ययन के लिए विशेष उपकरण तथा विशेष सॉफ्टवेयर विकसित करने में सफल हुई है। कम्पनी ने बिना हवा के पनपने वाले जीवाणुओं के अध्ययन के लिए एक अनूठा वर्क स्टेशन तैयार किया है। कम्पनी ने एनारोबिक बैक्टीरिया को खाद्य पदार्थों, पानी तथा मेडिकल सेंपलों से अलग करने का काम इतना सटीक और आसान बना दिया है कि दुनिया के 20 देशों में ‘मैक्स’ नामक यही मशीन कार्य कर रही है और इस मशीन में अब एक और क्रांतिकारी संशोधन किया गया है, जिससे यह मशीन अब जीवाणु के चारों ओर के बदल

हैल्थ अपडेट : मानसिक क्षमता नहीं बढ़ने देता कैलकुलेटर

प्रस्तुति: योगेश कुमार गोयल (मीडिया एंटरटेनमेंट फीचर्स) आज छोटी-छोटी गणनाओं के लिए भी कैलकुलेटर का उपयोग आम बात हो गई है लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि गणित के कठिन सवालों के हल के लिए कैलकुलेटर के बढ़ते उपयोग से मानसिक क्षमता का विकास नहीं हो पाता। इसके विपरीत यदि गणित के हल मानसिक तौर पर तैयार किए जाएं तो मानसिक क्षमता के साथ ही गणितीय कौशल भी बढ़ता है। यूनिवर्सिटी ऑफ सैसकेटचेवन के वैज्ञानिकों के एक दल ने अध्ययन करके पाया कि कैलकुलेटरों का उपयोग करने तथा न करने वाले छात्रों के गणितीय कौशल में काफी अंतर है। चीन के कैलकुलेटर का उपयोग न करने वाले छात्रों की सवाल हल करने की मानसिक क्षमता कनाडियाई छात्रों से ज्यादा पाई गई। गौरतलब है कि चीन में प्राथमिक व माध्यमिक स्तर पर कैलकुलेटर का उपयोग नहीं होता जबकि कनाडा में हर छात्र के पास अपना कैलकुलेटर होता है। यह अध्ययन करने वाले मनोवैज्ञानिक डा. जैमी कैंपबेल के अनुसार चीनी व कनाडियाई छात्रों ने हालांकि पूछे गए सवालों के सही जवाब दिए थे किन्तु चीनी छात्रों की प्रश्नों के उत्तर देने की गति काफी तेज थी। यह अध्ययन चीन तथा कनाडा में शिक्षा ग्रहण

हैल्थ अपडेट : निकोटीन से टी. बी. जीवाणु का सफाया

प्रस्तुति: योगेश कुमार गोयल (मीडिया एंटरटेनमेंट फीचर्स) यह सही है कि सिगरेट में मौजूद निकोटीन को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तत्व माना जाता है क्योंकि निकोटीन धूम्रपान करने वाले को इसका आदी बनाकर फेफड़ों को नुकसान पहुंचाती है लेकिन क्या आप जानते हैं कि यही निकोटीन टी.बी. (तपेदिक) पैदा करने वाले जीवाणुओं का नाश भी करती है। जी हां, यह कहना है यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट्रल फ्लोरिडा के प्रमुख शोधकर्ता डा. सलेह नासेर का। डा. सलेह नासेर कहते हैं कि तम्बाकू में पाई जाने वाली निकोटीन सिर्फ माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबर क्लोसिस का ही नहीं बल्कि अन्य शक्तिशाली जीवाणुओं का भी सफाया करती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि निकोटीन टीबी बैक्टीरिया का विकास ही नहीं रोकती बल्कि उसे पूरी तरह नष्ट कर देती है। जब शोध के दौरान प्रयोगशाला में खतरनाक जीवाणुओं पर बहुत थोड़ी मात्रा में निकोटीन डाला गया तो सभी जीवाणु मर गए। तपेदिक फैलाने वाले जीवाणुओं को मारने में एक सिगरेट में मौजूद निकोटीन से भी कम मात्रा का उपयोग किया गया था। इस शोध का अर्थ यह नहीं है कि निकोटीन का यह लाभ सिगरेट के जरिये इसका सेवन करने से भी मिल सकेगा। सिगरेट

एक दिन की बच्ची बनी मां!

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प्रकृति की लीला अपरम्पार!

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यह भी जानें : क्यों हो जाती हैं युवतियां शर्म से लाल?

आपमें से बहुतों ने युवतियों के मुख से कभी न कभी यह तो सुना ही होगा, ‘‘मैं शर्म से लाल हो गई ...!’’ अथवा आपने किसी को किसी युवती के लिए यह कहते सुना होगा, ‘‘वह देखो, कैसे शरमा रही है!’’ दरअसल शर्माना एक स्वाभाविक क्रिया है पर महिलाओं में मौजूद एक विशेष हार्मोन की सक्रियता शर्म की दशा में उनके चेहरे को लाल करने में प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। जब कोई युवती किसी बात पर शर्माती है, तब इस हार्मोन की सक्रियता से चेहरे पर विद्यमान रक्त कोशिकाओं में रक्त की मात्रा एकाएक बढ़ जाती है, जिसके कारण चेहरा लाल दिखाई देता है। (मीडिया एंटरटेनमेंट फीचर्स) (यह रचना ‘मीडिया एंटरटेनमेंट फीचर्स’ के डिस्पैच से लेकर यहां प्रकाशित की गई है)

हैल्थ अपडेट : फल-सब्जियों के सेवन से फेफड़े बनें मजबूत

प्रस्तुति: योगेश कुमार गोयल (मीडिया एंटरटेनमेंट फीचर्स) किसी भी व्यक्ति को सांस की बीमारी होने पर उसका बुरा हाल हो जाता है। ऐसे में दम उखड़ने पर वह कहीं भी आने-जाने और कोई काम सही ढ़ंग से करने में असमर्थ होता जाता है लेकिन एक शोध के बाद वैज्ञानिकों का कहना है कि फेफड़ों के सही ढ़ंग से कार्य करते रहने और श्वसन रोग से मुक्त रहने के लिए जरूरी है कि फल-सब्जियों का हम अधिकाधिक सेवन करें। शोध के दौरान ब्रिटेन की नाटिंघम यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 2600 से ज्यादा व्यस्कों के भोजन तथा श्वसन स्वास्थ्य का अध्ययन किया। शोधकर्ताओं का कहना है कि ज्यादा सेब तथा टमाटर खाने वाले व्यक्तियों का श्वसन स्वास्थ्य ठीक रहता है और उनके फेफड़े भी सही ढ़ंग से कार्य करते रहते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि सप्ताह में कम से कम 5 सेब और 3 टमाटर खाने से बहुत लाभ होता है और ऐसे व्यक्तियों के फेफड़े अपनी उम्र से तीन वर्ष कम होने जैसी चुस्ती से कार्य करते हैं। साउथ हैम्पटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने भी धूम्रपान करने वाले कुछ व्यक्तियों को दमे जैसी बीमारी होने तथा कुछ को ये बीमारी न होने के बारे में 115 पीड़ितों तथा 116

हैल्थ अपडेट : पौधों की चर्बी से होगा गठिया का इलाज

प्रस्तुति: योगेश कुमार गोयल (मीडिया एंटरटेनमेंट फीचर्स) जोड़ों में दर्द, जलन व कड़ापन लाने वाली बीमारी को ‘गठिया’ के नाम से जाना जाता है। गठिया नामक बीमारी प्रायः 25 से 50 वर्ष तक के व्यक्तियों को हो सकती है। यह बीमारी शरीर की प्रतिरोध प्रणाली के सही ढ़ंग से काम न कर पाने के कारण स्वस्थ उत्तकों के नष्ट हो जाने की वजह से होती है तथा गंभीर मामलों में गठिया से विकृति भी हो जाती है। इस बीमारी का सबसे बुरा पक्ष यह है कि इसका शरीर के दाएं व बाएं अंगों पर एक साथ असर पड़ता है। इसके कारण जोड़ों में दर्द व जलन के साथ ही वजन कम होना, बुखार, खून की कमी, थकावट व कमजोरी के लक्षण भी देखे जाते हैं। जोहान्सबर्ग के वैज्ञानिकों ने गठिया के इलाज के लिए पौधों की चर्बी ‘स्टेरोल’ तथा ‘स्टेरोलिन’ के मिश्रण से ‘स्टेरीनॉल’ नामक एक दवा तैयार की है, जिसके बारे में इनका कहना है कि यह दवा गठिया का प्रभावी इलाज तो करती ही है, साथ ही शरीर की प्रतिरोध प्रणाली की अन्य गड़बड़ियों को भी ठीक कर देती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि स्टेरोल व स्टेरोलिन शरीर में बाहरी जीवों से लड़ने वाली कोशिकाओं को सक्रिय करती है। पौधों की ये दोनो

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अपना घर

. उषा जैन ‘शीरी’ (मीडिया केयर नेटवर्क) सुशीला रोते-रोते सोचने लगी कि बचपन में एक बार गैस पर दूध रखकर मां उसे दूध देखते रहने के लिए कहकर मंदिर चली गई थी और वो एक पत्रिका पढ़ने में ऐसी मशगूल हुई थी कि दूध का उसे ध्यान ही न रहा था। दूध उबल-उबलकर गिरता रहा। जब दूध जलने की महक आई तो दौड़कर गई थी। तब तक दादी भी पूजा खत्म करके आ गई थी। उन्होंने उसकी पढ़ाई को कोसते हुए कहा था, ‘‘बहू को कितना कहती हूं कि इसकी पढ़ाई-लिखाई छुड़वाकर कुछ घर का काम धंधा भी सिखा दे। पढ़-लिखकर लड़की हाथ के बाहर हुई जा रही है।’’ मां ने भी मंदिर से आते ही उसे दो थप्पड़ जड़ दिए थे। उस दिन चाय भी नहीं मिली थी जबकि भैया उसे चिढ़ा-चिढ़ाकर मिल्क शेक पीता रहा था। वह उस घर में बोझ थी। उसे पराए घर जो चले जाना था। पति के घर आई तो बात-बात पर सास कहती, ‘‘हमारे घर में ये सब नहीं चलेगा।’’ पति से जरा कहासुनी होने पर वे कहते, ‘‘निकल जाओ मेरे घर से।’’ समय के साथ बेटा जवान हो गया। पति गुजर गए। बहू उससे घर की नौकरानी जैसा बर्ताव करती। उस दिन भी अवसाद में डूबी वो दूध उबल जाना नहीं देख पाई। बहू का पारा अब सातवें आसमान पर था, ‘‘अपने घर में भी क्

पुलिस की वर्दी

- मुकेश कुमार सिन्हा (मीडिया केयर नेटवर्क) ‘‘अरे! मां जी! ऑटो का किराया तो देते जाइए। कुल 90 रुपये हुए हैं।’’ ‘‘ऐ! तू जानता नहीं, कौन हूं मैं! मेरा बेटा इस शहर का कोतवाल है। अरे, तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझसे किराया मांगने की?’’ किराया न मिलने से क्षुब्ध ऑटो चालक बड़बड़ाता हुआ ऑटो स्टार्ट कर ही रहा था कि वहीं से गुजर रहे उन्हीं कोतवाल साहब ने पता चलने पर अपनी मां के बदले उस ऑटो वाले का किराया चुकता कर दिया और अपने घर का रूख किया। घर में घुसते ही मां ने कहा, ‘‘जानता है बेटा, आज ...!’’ ‘‘बस कर मां। मैं जानता हूं पूरी बात लेकिन बेटे की पुलिस की वर्दी की धौंस दिखाकर इस तरह किसी गरीब का निवाला छीनना सही बात नहीं है। बेचारा सुबह से लेकर शाम तक मेहनत करता है, तब जाकर रात के वक्त उस गरीब के घर का चूल्हा जलता है। मां, यह वर्दी दूसरों की हिफाजत के लिए है, इस तरह से गरीबों पर धौंस दिखाने के लिए नहीं।’’ (एम सी एन) (यह रचना ‘मीडिया केयर नेटवर्क’ के डिस्पैच से लेकर यहां प्रकाशित की गई है)

सर्वाधिक जीवित रहने वाला हिरण ‘उत्तरी अमेरिकी हिरण’

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जीव-जंतुओं की अनोखी दुनिया-48-2 . योगेश कुमार गोयल (मीडिया केयर नेटवर्क)   दुनिया भर में पाई जाने वाली हिरणों की अनेक प्रजातियों में से कनाडा तथा उत्तरी अमेरिका में पाया जाने वाला हिरण, जिसे प्रायः ‘उत्तरी अमेरिकी हिरण’ ही कहा जाता है, दुनियाभर में हिरणों में सबसे ज्यादा समय तक जीवित रहने वाला हिरण है लेकिन इसके मांस के भक्षण के लिए इसका बड़े पैमाने पर शिकार किए जाने के कारण इनके अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा है। दरअसल इसका मांस काफी स्वादिष्ट बताया जाता है, इसलिए पिछले कुछ दशकों में इन हिरणों का शिकार बहुत बड़ी तादाद में हुआ है। इस हिरण की एक खासियत यह भी है कि यह हिरणों की अन्य प्रजातियों के मुकाबले करीब तीन गुना बड़ा होता है और इसके सींग भी दूसरे हिरणों के मुकाबले बहुत बड़े, लंबे और भारी होते हैं लेकिन अपने बड़े आकार के भारी शरीर व भारी-भरकम लंबे सींगों के बावजूद यह जंगलों में आसानी से भ्रमण-विचरण करता है। हालांकि उत्तरी अमेरिकी हिरण अपने लंबे व भारी सींगों का उपयोग दुश्मनों से अपने बचाव के लिए करते हैं लेकिन मादा के साथ संगम के मौसम में नर हिरण मादा पर अपने अधिकार के लिए दूसरे नर ह

स्वास्थ्य चर्चा : प्रकृति की अनमोल देन 'तरबूज'

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- योगेश कुमार गोयल (मीडिया केयर नेटवर्क) गर्मी का मौसम शुरू होते ही बाजारों में और सड़क के किनार भी तरबूज के भारी-भरकम ढ़ेर नजर आने लगते हैं। तरबूज गर्मी के मौसम का ठंडी तासीर वाला बड़े आकार का सस्ता फल है। वास्तव में सख्त हरे छिलके के भीतर काले अथवा सफेद बीजों से युक्त लाल रसदार गूदे वाला ग्रीष्म ऋतु का एक बेमिसाल फल है तरबूज। तरबूज को मतीरा, पानीफल, कालिन्द आदि विभिन्न नामों से भी जाना जाता है। इसे संस्कृत में कालिन्द तथा मराठी में कलिंगड़ कहा जाता है। ग्रीष्म ऋतु का फल तरबूज प्रकृति की अनमोल देन है। इसे प्रकृति प्रदत्त अनुपम ठंडाई माना गया है। तरबूज के 100 ग्राम गूदे में 95.8 ग्राम जल, 3.3 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 0.2 ग्राम प्रोटीन, 0.2 ग्राम वसा, 0.2 ग्राम रेशा, 12 मिलीग्राम फास्फोरस, 11 मि.ग्रा. कैल्शियम, 7.9 मि.ग्रा. लौह तत्व, 1 मि.ग्रा. विटामिन सी, 0.1 मि.ग्रा. नियासिन, 0.04 मि.ग्रा. राइबोफ्लेविन, 0.02 मि.ग्रा. थायमिन, 16 किलो कैलोरी ऊर्जा इत्यादि अनेक पोषक तत्व पाए जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार तरबूज मस्तिष्क एवं हृदय को ताजगी प्रदान करने वाला, नेत्रज्योति बढ़ाने वाला, मन-मस्तिष्क

फिल्म विशेष : बॉलीवुड की रीयल लाइफ जोड़ियां रील लाइफ में फ्लॉप क्यों?

- एम. कृष्णाराव राज, - एम.सी.एन. ब्यूरो (मीडिया केयर नेटवर्क) बॉलीवुड की रीयल लाइफ जोड़ियां रील लाइफ में जब एक साथ नजर आती हैं तो कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाती, फिर वो चाहे जॉन अब्राहम और बिपाशा बसु की हॉट एंड सेक्सी जोड़ी हो या अजय देवगन और काजोल की स्वीट सी जोड़ी। आखिर ऐसी क्या वजह है कि रीयल लाइफ की हॉट एंड पॉपुलर जोड़ियां रील लाइफ में हिट नहीं हो पाती? मीडिया केयर ग्रुप की इस विशेष प्रस्तुति में आइए जानते हैं कि बॉलीवुड में रीयल लाइफ जोड़ियां रील लाइफ में क्यों होती हैं फ्लॉप? दर्शक रीयल लाइफ जोड़ी को परदे पर साथ देखने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते: जॉन अब्राहम बिपाशा और मेरी जोड़ी को बॉलीवुड की सबसे हॉट एंड सेक्सी जोड़ी माना जाता है। बावजूद इसके काफी हद तक यह बात सच है कि हमारी साथ-साथ की गई फिल्में फ्लॉप रही, जैसे कि फिल्म ‘जिस्म’ ने भले ही बतौर एक्टर मुझे पहचान दी लेकिन यह फिल्म हिट नहीं हुई। ठीक उसी तरह हम दोनों की एक और फिल्म ‘गोल’ भी फ्लॉप रही। इसके पीछे खास वजह क्या है, यह तो मुझे पता नहीं लेकिन मुझे लगता है कि दर्शक रीयल लाइफ जोड़ी को परदे पर साथ देखने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेत

हास-परिहास : मियां खटकरर्म का ‘पीस महल’!

- कपूत प्रतापगढ़ी (मीडिया केयर नेटवर्क) सवेरे-सवेरे मियां खटकरर्म ने मेरे घर की कुंडी खड़कायी और बोले, ‘‘कपूत भाई, मैंने अपने इमामबाड़े का नाम बदलकर ‘पीस महल’ रख लिया है। आप तो जानते ही हैं कि मैं इन दिनों काफी तंगहाल हूं। इसलिए मैं इस पीस महल को किराये पर देना चाहता हूं। सुना है कि आपको भी मकान बदलना है, इसीलिए मैंने सोचा कि क्यों न आप से ही शुरूआत करूं।’’ मैंने पूछा, ‘‘लेकिन मियां, भला आपको कैसे पता चला कि हमें मकान बदलना है?’’ ‘‘अरे मियां, हम सब कुछ जानकर भी चुप रहें, ये और बात है। ऐसा क्या है कि हमको तुम्हारी खबर न हो! आपके पड़ोसी झुट्ठन मिसिर जी बता रहे थे। मेरी मानिये तो आज ही चलकर कमरा देख लीजिए।’’ मियां खटकरर्म इतना कहकर एक लंबी सांस भरकर फिर बोले, ‘‘अजी वाह! क्या कमरे हैं हमारे इमामबाड़े के ... माफ कीजिएगा ‘पीस महल’ के, जहां हवा-पानी की मुफ्त व्यवस्था है।’’ मैंने कहा, ‘‘मियां, तशरीफ भी रखिएगा या बस यूं ही बड़बड़ाते रहिएगा?’’ ‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं’’ कहते हुए मियां सोफे में धंस गए। मैंने पत्नी को चाय लाने को कहा और खुद कपड़े बदलने चला गया। थोड़ी देर बाद हम उनके उस तथाकथित ‘पीसम

जीव-जंतुओं की अनोखी दुनिया-48-1

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- योगेश कुमार गोयल (मीडिया केयर नेटवर्क) स्तनधारी होने पर भी अण्डे देता है ‘एकिड्ना’ ‘एकिड्ना’ साही जैसा एक कांटेदार प्राणी है लेकिन इसके कांटेदार शरीर के अलावा भी इसकी एक और बड़ी विशेषता यह है कि यह दुनियाभर में पाए जाने तमाम स्तनपायी प्रजाति के जीवों में से उन दो प्रजाति के जीवों में शामिल है, जो स्तनपायी होने के बावजूद अण्डे देते हैं। अण्डे देने वाले ये दोनों स्तनपायी जीव आस्ट्रेलिया के न्यू गिनी क्षेत्र में ही पाए जाते हैं। अण्डे देने वाले ये दोनों स्तनपायी जीव हैं:- प्लैटीपस तथा एकिड्ना। मादा एकिड्ना सालभर में सिर्फ एक ही अंडा देती है। यह अंडा उसके पेट पर बनी थैली में रहता है। जब नर और मादा एकिड्ना का शारीरिक मिलन होता है, उसी समय यह थैली मादा एकिड्ना के पेट पर बन जाती है और शिशु कई हफ्तों तक इसी थैली में रहकर थैली में बनी ग्रंथियों से रिसने वाला दूध पीकर बड़ा होता है। एक व्यस्क एकिड्ना की लम्बाई करीब एक फुट तक होती है जबकि उसका वजन 4 से 10 किलो के बीच होता है। चूंकि एकिड्ना का शरीर भी साही की ही भांति नुकीले कांटों से भरा होता है और यह अपनी लंबी तथा चिपचिपी जीभ से कीड़े-मकौड़े पकड़
केवल कसाब ही नहीं, देश के अमन-चैन के दुश्मन इन कुख्यात आतंकियों का यही हश्र होना चाहिए! मुम्बई के शहीदों को सलाम! देश की अदालतों को सलाम!

बेटा! संवाददाता बन जा

व्यंग्य - सुनील कुमार ‘सजल’ (मीडिया केयर नेटवर्क) मुझ जैसे व्यक्ति की इतनी विशाल औकात नहीं है कि मैं रोजाना आठ-दस अखबार खरीदकर पढ़ सकूं मगर अखबार पढ़ने के मामले में मैं उस दिन खुद को खुशनसीब समझने लगा, जब मेरे छोटे से कस्बे में एक के बाद एक कई छोटे-बड़े अखबारों के संवाददाता, सह-न्यूज एजेंट पैदा हो गए। भगवान उनका भला करे! भले ही इन बेचारों की 20-25 प्रतियां ही बिक पाती हैं मगर उनकी शान के गले में ‘संवाददाता’ होने का तमगा अवश्य लटका रहता है। अभी तक दफ्तर में बामुश्किल एक-दो अखबार ही आया करते थे लेकिन दो-चार दिन से देख रहा हूं कि दफ्तर में रोज 8-10 अखबार आने शुरू हो गए हैं। जो भी चौड़ी छाती वाला साहसी संवाददाता बन जाता है, वह अपना एक अखबार दफ्तर में फैंक जाता है, भले ही दफ्तर से उसे परमिशन न मिली हो। वैसे भी आजकल छोटे शहरों में संवाददाता वही बन पाता है (ज्यादातर मामलों में), जो उनका अखबार बेच पाता है। फिर संवाददाता होने का रूतबा दिखाना है तो अखबार तो अपने क्षेत्र में चलाना ही पड़ेगा। दफ्तर में बढ़ती अखबारों की संख्या को लेकर एक दिन मैंने साहब से पूछ ही लिया, ‘‘सर ...! हर महीने दो-चार अखबार

पत्रकार योगेश कुमार गोयल के ‘तीखे तेवर’

http://www.starnewsagency.in/2010/05/blog-post_3627.html

Star News Agency: सामाजिक सरोकारों से जुड़े हैं ‘तीखे तेवर’

Star News Agency: सामाजिक सरोकारों से जुड़े हैं ‘तीखे तेवर’

कैसा मज़दूर, कैसा दिवस? Web-Patrika Srijangatha

कैसा मज़दूर, कैसा दिवस? Web-Patrika Srijangatha

Star News Agency: अनूठा संग्रह है ‘जीव-जंतुओं की अनोखी दुनिया’

Star News Agency: अनूठा संग्रह है ‘जीव-जंतुओं की अनोखी दुनिया’

कैसा मजदूर, कैसा दिवस?

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मजदूर दिवस (1 मई) पर विशेष -- योगेश कुमार गोयल (मीडिया केयर नेटवर्क) प्रतिवर्ष 1 मई का दिन ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस’ अथवा ‘मजदूर दिवस’ के रूप में मनाया जाता है, जिसे ‘मई दिवस’ भी कहा जाता है। मई दिवस समाज के उस वर्ग के नाम किया गया है, जिसके कंधों पर सही मायनों में विश्व की उन्नति का दारोमदार है। इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी भी राष्ट्र की प्रगति एवं राष्ट्रीय हितों की पूर्ति का प्रमुख भार इसी वर्ग के कंधों पर होता है। यह मजदूर वर्ग ही है, जो हाड़-तोड़ मेहनत के बलबूते पर राष्ट्र के प्रगति चक्र को तेजी से घुमाता है लेकिन कर्म को ही पूजा समझने वाला श्रमिक वर्ग श्रम कल्याण सुविधाओं के लिए आज भी तरस रहा है। मई दिवस के अवसर पर देशभर में बड़ी-बड़ी सभाएं होती हैं, बड़े-बड़े सेमीनार आयोजित किए जाते हैं, जिनमें मजदूरों के हितों की बड़ी-बड़ी योजनाएं बनती हैं और ढ़ेर सारे लुभावने वायदे किए जाते हैं, जिन्हें सुनकर एक बार तो यही लगता है कि मजदूरों के लिए अब कोई समस्या ही बाकी नहीं रहेगी। लोग इन खोखली घोषणाओं पर तालियां पीटकर अपने घर लौट जाते हैं किन्तु अगले ही दिन मजदूरों को पुनः उसी माहौल से रूबरू