जब नेताजी को हो गया था 22 वर्षीया एमिली से प्यार

 - श्वेता गोयल


नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रेम कहानी काफी दिलचस्प रही। फरवरी 1932 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान जेल में बंद नेताजी की तबीयत खराब होने लगी थी, जिसे देखते हुए ब्रिटिश सरकार इलाज के लिए उन्हें यूरोप भेजने पर सहमत हो गई थी। विएना में सुभाष चंद्र बोस के इलाज के दौरान एक यूरोपीय प्रकाशक ने उन्हें एक किताब ‘द इंडियन स्ट्रगल’ लिखने की जिम्मेदारी सौंपी। सुभाष बाबू ने यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी स्वीकार तो कर ली लेकिन इसे पूरा करने के लिए उन्हें एक ऐसे सहयोगी की जरूरत महसूस हुई, जिसे अच्छी अंग्रेजी और टाइपिंग आती हो।


सुभाष चंद्र बोस के एक दोस्त थे डा. माथुर, जिन्होंने उन्हें दो ऐसे लोगों के बारे में बताया। नेताजी द्वारा इंटरव्यू के दौरान पहले को रिजेक्ट कर दिए जाने के बाद दूसरे उम्मीदवार को बुलाया गया। दूसरा उम्मीदवार था 26 जनवरी 1910 को ऑस्ट्रिया के एक कैथोलिक परिवार में जन्मी 22 वर्षीया खूबसूरत युवती एमिली शेंकल, जिसके पिता एक प्रसिद्ध पशु चिकित्सक थे। सुभाष बाबू उससे बहुत प्रभावित हुए और जून 1934 में एमिली ने नेताजी के साथ काम करना शुरू कर दिया। एमिली से मुलाकात के बाद सुभाष चंद्र बोस के जीवन में नाटकीय परिवर्तन आया। वह एमिली की ओर आकर्षित होने लगे और दोनों में स्वाभाविक प्रेम हो गया। हालांकि एमिली के सम्पर्क में आने से पहले भी नेताजी को प्रेम और शादी के कई ऑफर मिले थे लेकिन उन्होंने किसी में दिलचस्पी नहीं ली किन्तु एमिली की खूबसूरती ने उन पर जादू सा कर दिया था।

सुभाष और एमिली भले ही एक-दूसरे से बेपनाह मोहब्बत करते थे किन्तु 1934 से 1945 के बीच करीब 11 वर्षों के संबंधों में दोनों तीन वर्ष से भी कम समय तक साथ रह सके। नाजी जर्मनी के सख्त कानूनों को देखते हुए दोनों ने 26 दिसम्बर 1937 को आस्ट्रिया के बाड गास्टिन नामक स्थान पर हिन्दू पद्धति से विवाह रचा लिया। विएना में एमिली ने 29 नवम्बर 1942 को एक पुत्री को जन्म दिया, जिसके चार सप्ताह की होने पर सुभाष ने उसे पहली बार देखा था और उसका नाम अनिता बोस रखा, जो जर्मनी की विख्यात अर्थशास्त्री बनी।

जितनी चर्चित नेताजी सुभाष की प्रेम कहानी रही है, उससे कहीं ज्यादा चर्चित आज भी उनकी मौत का रहस्य है। दरअसल उनकी मृत्यु के संबंध में कई दशकों से यही दावा किया जाता रहा है कि 18 अगस्त 1945 को सिंगापुर से टोक्यो (जापान) जाते समय ताइवान के पास फार्मोसा में उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और उस हवाई दुर्घटना में उनका निधन हो गया। हालांकि उनका शव कभी नहीं मिला और मौत के कारणों पर आज तक विवाद बरकरार है। उनकी मृत्यु का रहस्य जानने के लिए विभिन्न सरकारों द्वारा पूर्व में कुछ आयोगों का गठन भी किया जा चुका है और कोलकाता हाईकोर्ट द्वारा नेताजी के लापता होने के रहस्य से जुड़े खुफिया दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की मांग पर सुनवाई के लिए स्पेशल बेंच भी गठित की गई किन्तु अभी तक रहस्य से पर्दा नहीं उठा है। फैजाबाद के गुमनामी बाबा से लेकर छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले तक में नेताजी के होने संबंधी कई दावे भी पिछले दशकों में पेश हुए किन्तु सभी की प्रामाणिकता संदिग्ध रही और नेताजी की मौत का रहस्य यथावत बरकरार है।
(लेखिका शिक्षिका हैं)

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