भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना की जंग


--- डा. भरत मिश्र प्राची (मीडिया केयर नेटवर्क)



 
देश पर जब-जब संकट के बादल मड़राये हैं, जब-जब देश में अनाचार, व्यभिचार, अत्याचार पनपा है तब-तब उसे मिटाने की जनक्रांति किसी न किसी मसीहा के नेतृत्व में यहां उभरी है, जिसका स्वरूप समय-समय पर बदलता रहा है। कभी शांति बनकर तो कभी धधकती ज्वाला बनकर। इसका इतिहास गवाह है। त्रेता युग में राम-रावण युद्ध, जहां मानवीय संस्कृति पर दानवीय अत्याचार का बोझ भारी पड़ गया था, वहीं द्वापर युग में कौरव के असहनीय एवं अमानवीय अत्याचार के विरूद्ध में श्रीकृष्ण के नेतृत्व में जनक्रांति उभरी।

कलियुग में अंग्रेजों से ग्रसित आम जनता की रक्षा में मंगल पांडे, लक्ष्मीबाई, तांत्या टोपे, बाबू कुवंर सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी सहित अनेक गुमनाम देशभक्तों के नेतृत्व में सम्पूर्ण आजादी के लिए जो जनसैलाब उमड़ पड़ा था, उसके परिणाम से सभी भली-भांति परिचित हैं। सदियों से चली आ रही गुलामी से भारत को मुक्ति तो मिली परन्तु फिर से देश अराजक तत्वों के चंगुल में उलझ गया। लोकतंत्र पर एकतंत्र हावी हो चला, जिससे मुक्ति दिलाने के लिए देश एक बार फिर गांधीवादी नेता जयप्रकाश के नेतृत्व में दूसरी आजादी के नाम जाग तो गया पर कोई खास परिवर्तन नहीं हो सका। देश में सियासती परिवर्तन तो अवश्य हुआ परन्तु मूल समस्या मिटने के बजाय और गंभीर हो गई। देश में कुछ नए प्रकार के लुटेरे पैदा हो गए। समाज के जो अराजक तत्व सत्ता बनाने में सहायक भूमिका निभाते रहे, वे इस आन्दोलन की पृष्ठभूमि में अवतरित होकर सत्ता तक पहुंच गए। देश में अनेक दल उभर आये।

आज सत्ता में जिस तरह के लोग छाये हैं, उनसे पूरा देश भली-भांति परिचित है। राजनीतिक दलों के माध्यम से आज समाज के अधिकांश अपराधी प्रवृत्ति एवं असमाजिक कंटक, जिसमें भू-माफिया, हत्या-लूट में लिप्त, दारू के ठेकेदार, संगीन अपराध में जेल की हवा खा चुके व्यक्ति आदि-आदि संसद तक पहुंच गए हैं, जिसकी वजह से लूट का एक नया रूप ‘भ्रष्टाचार’ पनपा। आज कोई भी सरकारी विभाग ऐसा नहीं है, जहां भ्रष्टाचार न हो। कहना गलत न होगा कि इसके कारण देश की सुरक्षा व्यवस्था भी धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही है। शिक्षा तो पहले से ही अपंग हो चली है। जहां परीक्षा से पूर्व ही पेपर का आउट हो जाना, पास होने के लिए बाजार में वन वीक सीरिज, पास बुक का आना, नकली दवाई, नकली नोट, नकली एवं जहरीली दैनिक जीवन उपभोग की आम वस्तुएं आदि-आदि इस भ्रष्ट व्यवस्था की ही देन हैं। हर जगह लेन-देन का व्यापार हावी है। आदमी का निवाला तो छिन ही रहा है, पशुओं का चारा तक खा जाने के प्रकरण प्रकाश में आए हैं। यहां सड़क बनने से पहले ही टूट जाती है, पुल बिखर जाते हैं, बिल्डिंगें धराशायी हो जाती हैं।

भ्रष्टाचार के पांव गरीब की मेहनत की रोटी तक को रौंद रहे हैं। नरेगा में यह दृश्य साफ-साफ नजर आता है। विकास के नाम पर विनिवेश का जो रूप यहां परिलक्षित हो रहा है, उसमें साफ-साफ भ्रष्टाचार दिखाई दे रहा है। मंत्री से लेकर संतरी तक आज सब के सब भ्रष्टाचार में लिप्त है। आज सफेदपोशों का ही बोलबाला है, जहां हाथ डालो, वहीं नया घोटाला है। यही घोटाले भ्रष्टाचार का रूप हैं, जहां विकास गौण हो चला है।

इसी भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में गांधीवादी नेता अन्ना हजारे के नेतृत्व में जनक्रांति उभर चली है, जिसे पूरे देश का जनसमर्थन मिल रहा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे ने गांधीवादी तरीके से आमरण अनशन शुरू कर एक बार देश को जगा ही नहीं दिया है बल्कि सत्ता में बैठे लोगों के हौंसले भी पस्त हो चले हैं। राजनीति में बैठे भ्रष्ट लोग सजग हो चले हैं लेकिन अभी तक कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया है। वरिष्ठ राजनीतिज्ञ शरद पंवार लोकपाल समिति का प्रमुख पद अपने पास ही रखना चाहते है और अन्ना हजारे का मानना है कि राजनीतिज्ञों के नेतृत्व में कोई ठोस कारगर उपाय नहीं हो सकता, तभी जन लोकपाल समिति के अध्यक्ष पद पर गैर राजनीतिक व्यक्ति की वे वकालत जोर-शोर से कर रहे हैं। समिति में गैर राजनीतिक व्यक्ति को शामिल करने की मांग उचित भी है, जिसे सरकार मान तो रही है पर सरकारी आदेश जारी करने एवं अध्यक्ष पद पर गैर राजनीतिक व्यक्ति को बैठाने पर एतराज जता रही है। इससे सरकार की मंशा पर संदेह झलक रहा है, जिसे अन्ना हजारे की दूरदृष्टि पहचान गई है। आज पूरा देश इस आन्दोलन के साथ जुड़ता जा रहा है। मुुम्बई में वकील अन्ना के समर्थन में सड़क पर उतर आए तो ‘गायत्री पविार’ के अनेकों सदस्य उपवास रखकर इस आन्दोलन को मौन समर्थन दे रहे हैं। स्वार्थ से प्रेरित राजनीतिज्ञ इस आन्दोलन की अभी से आलोचना करने लगे हैं।

अन्ना हजारे ने इस आन्दोलन को राजनीतिक दलों की छाया से अभी तक दूर ही रखा है जबकि राजनीतिक दल इस आन्दोलन समर्थन देकर राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं। यदि ऐसा हुआ तो ढ़ाक के तीन पात दिखाई देंगे और तब अन्ना का त्याग एवं सपना अधूरा रह जाएगा लेकिन जिस प्रकार अन्ना से मिलने पहुंचे उमा भारती और ओमप्रकाश चौटाला सरीखे दिग्गज नेताओं को बैरंग लौटने पर विवश होना पड़ा, उससे जनता के बीच अन्ना की इस मुहिम को लेकर एक अच्छा संकेत गया है। जयप्रकाश आन्दोलन को जनसमर्थन तो अवश्य मिला था पर आन्दोलन के उपरांत जो लोग उभरकर सामने आए, उनसे लोकतंत्र का स्वरूप ऐसा विकृत हो गया, जिससे देश भ्रष्टाचार के चंगुल में उलझता चला गया। इस तरह के स्वरूप ने जे. पी. आंदोलन की पृष्ठभूमि को ही पलट दिया। अन्ना हजारे ने अपने इस आन्दोलन को राजनीतिक प्रक्रिया से दूर ही रखा है, जिसे जनसमर्थन लगातार मिलता ही जा रहा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ उभरी इस जनक्रांति की आज देशहित में महत्ती आवश्यकता है। (एम सी एन)

Comments

Amit Chandra said…
जब जब अहिंसा की लाठी चली है तब तब चमत्कार हुआ है।

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