लघुकथा : अहसास
वर्मा जी के पुत्र राकेश की शहर की दो-तीन लड़कियों ने उनके साथ छेड़खानी करने के कारण जमकर धुनाई कर दी और कुछ लोगों की मदद से उसे पुलिस के हवाले कर दिया।
राकेश के हवालात में बंद होने की खबर जब उसके मां-बाप तक पहुंची तो वर्मा जी अंदर ही अंदर उबल पड़े मगर कुर्सी से टस से मस न हुए।
उनकी पत्नी को मुसीबत में फंसे बेटे के प्रति उनके ममत्व ने द्रवित कर दिया था। वह पति की ओर से कोई पहल न होते देख आखिर बोल ही पड़ी, ‘‘जाओ जी, राकेश को हवालात से छुड़ा भी लाओ। और करोगे भी क्या अब?’’
‘‘क्या छुड़ा लाऊं? साले शादीशुदा होकर भी ऐसी हरकतें करते हैं। जरा भी शर्म नहीं आती कि लोग क्या कहेंगे?’’
‘‘तो तुम भी अपने जमाने में क्या कम थे?’’ पति के प्रत्युत्तर से आक्रोशित पत्नी ने कहा।
पत्नी के व्यंग्य बाण से घायल वर्मा जी का हृदय अब अहसास की जमीन तलाशने लगा। (एम सी एन)
- सुनील कुमार सजल’
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