ये कैसा ‘कुम्भ’ है?

सीधे कुम्भ नगरी से

. श्रीगोपाल ‘नारसन’ (मीडिया केयर नेटवर्क)

चाय, सुल्फा और भभूत बने आकर्षण
कुम्भ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए जहां कुम्भ स्नान और हरिद्वार के मंदिर मुख्य आकर्षण हैं, वहीं साधु-संतों के अखाड़ों व मठों से जुड़े डेरों में चाय, सुल्फा और भभूत आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। शायद ही कोई ऐसा डेरा हो, जहां दिनभर चाय, सुल्फा और भभूत मलने व प्रसाद के रूप में वितरित करने का दौर न चलता हो। तम्बूनुमा छोटे-छोटे डेरों में लकड़ी के बड़े तने को ही धूने में आग के हवाले कर सुल्फे के कश और चाय की चुस्की के साथ कुम्भ का आनंद ले रहे हैं नागा सन्यासी और उनके भक्तजन। साथ ही तम्बुओं में चल रहे रंगीन टी.वी. पर देश के ताजा हालात से भी वाकिफ हो रहे हैं सन्यासी बाबा। (एम सी एन)
रोज हो रही है लाखों रुपये के नशीले पदार्थों की खरीद-फरोख्त ‘‘माल है क्या?’’
‘‘कितना चाहिए!’’
‘‘चार तोला।’’
‘‘मिल जाएगा, 500 रुपये प्रति तोला का रेट है। रुपये एडवांस देने होंगे। सुबह रुपये दोगे तो शाम तक माल की डिलीवरी होगी।’’
ये संवाद अथवा वाक्य किसी फिल्म के डायलॉग नहीं हैं बल्कि धर्मनगरी हरिद्वार में कहीं ओर नहीं बल्कि एक ‘साधु’ के डेरे पर चरस खरीदने और बेचने को लेेकर होती बातचीत का अंश है। कुम्भ क्षेत्र में पुलिस एवं मेला प्रशासन भले ही सुरक्षा व्यवस्था के चाक-चौबंद होने का दावा कर रहे हों लेकिन हकीकत यह है कि कुम्भ मेला क्षेत्र में आए दिन लाखों रुपये के नशीले पदार्थों की खरीद-फरोख्त हो रही है। अफीम, चरस, गांजा, भांग की सप्लाई कुम्भ में आए साधु-संतों और कुम्भ में आने वाले नशेड़ी यात्रियों के लिए नेपाल तक से हो रही है। कुम्भ मेले की आड़ में नशीले पदार्थों की तस्करी नेपाल से हरिद्वार और हरिद्वार से पुनः बिक्री के रूप में उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और दिल्ली तक की जा रही है। (एम सी एन)
‘फिलिप’ से बन गए ‘गोपाल गिरी’
धार्मिक आस्था को मन में संजोकर ब्राजील से हरिद्वार कुम्भ में आए फिलिप को नागा सन्यासियों की दुनिया ऐसी भायी कि वो उन्हीं में रम गए। देखते ही देखते फिलिप ने गेरूएं वस्त्र धारण कर लिए और एक सन्त के चेले बन गए। करीब एक माह से कुम्भ क्षेत्र के डेरे पर रहकर फिलिप ने हिन्दी में ‘नमस्ते’ व ‘बोल बम’ कहना सीख लिया, वहीं चिलम का लंबा कश भी मारने लगे। सन्त ने इस विदेशी मेहमान को ‘गोपाल गिरी’ नाम से नवाजा। एक सप्ताह बाद वीजा अवधि खत्म होने के कारण ब्राजील लौट जाने वाले फिलिप उर्फ गोपाल गिरी का कहना है कि वे अब जीवन पर्यन्त अध्यात्म मार्ग पर चलते रहेंगे यानी ब्राजील में रहकर भी हरिद्वार से मिले संस्कारों का डंका बजेगा। (एम सी एन)
टू-लेन के चक्कर में बेहाल हुई सड़क
कुम्भ यात्रियों की सुरक्षा के लिए कुम्भ क्षेत्र के बाहर मंगलौर, लखनौता और राज्य बॉर्डर पर भले ही चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात कर दी गई हो लेकिन कुम्भ यात्रियों की सुविधा के लिए देवबन्द-मंगलौर मार्ग टू-लेन बनाने के चक्कर में पहले से भी बदतर हो गया है। तीन शाही स्नानों के बाद भी इस मार्ग के निर्माण की गाड़ी आगे नहीं बढ़ पा रही है। मार्ग पर जगह-जगह गड्ढ़े तो हैं ही, ऊपर से टू-लेन के नाम पर सड़क खोद दिए जाने से इस मार्ग पर चलना दूभर हो गया है। ऐसे में डाइवर्ट ट्रैफिक का लोड यह सड़क कैसे वहन कर पाएगी, भगवान ही जानें!
गायब हो गई शांति!
एक अखाड़े के थानापति शिव गिरी महाराज कुम्भ का वातावरण बदल जाने से आहत हैं। कुम्भ में न पहले जैसी शांति है और न ही आस्था का परम्परागत जज्बा दिखाई पड़ता है। लगता है, जैसे सब ड्यूटी बजाने ही आए हों। फिर चाहे लोगों को सुविधाएं मिलें या न मिलें, मेला निर्माण कार्य पूरे हों या अधूरे रहें। बजट पानी की तरह बहे या अधूरा खर्च हो, मेला प्रशासन तो बस 30 अप्रैल की बाट जोह रहा है ताकि कुम्भ अवधि समाप्त होते ही हालात से पल्ला झाड़ सकें जबकि पहले ऐसा नहीं था। साधु-संतों के साथ-साथ ड्यूटी बजाने वाले भी भक्ति और आस्था में लीन रहते थे, तभी तो एक ऐसा वातावरण बनता था कि चारों तरफ गंगा मैया के जयकारे सुनाई पड़ते थे, जिससे आध्यात्मिक शांति का सुख मिलता था हर किसी को। (एम सी एन)
धूना जलाना है तो लकड़ी खरीदें 500 रुपये क्विंटल
कुम्भ में आए साधु-संतों को शिकायत है कि धूना जलाने के लिए पहले के कुम्भों में उन्हें लकड़ी आसानी से मिल जाती थी लेकिन इस बार उन्हें 500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से लकड़ी खरीदनी पड़ रही है। आसमान छूते लकड़ी के दामों के कारण साधु-संतों के लिए धूना जलाना ही कठिन हो गया है। लकड़ी महंगी मिलने के कारण साधु-संतों में खासी नाराजगी भी देखने को मिली। हठयोगी प्रेम भारती कहते हैं कि समझ में नहीं आता कि ये कैसा कुम्भ है, जहां साधु-सन्तों को पूजा के लिए भी लकडियां महंगी दरों पर मिल रही हैं। (एम सी एन)
(लेखक ‘मीडिया केयर नेटवर्क’ से संबद्ध टिप्पणीकार हैं)

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