रेल यात्रा कब होगी सुरक्षित और भरोसेमंद ?

योगेश कुमार गोयल 

13 जनवरी को पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के दोमोहानी इलाके में हुई रेल दुर्घटना में बीकानेर-गुवाहाटी एक्सप्रेस के 12 डिब्बे पटरी से उतरने के कारण नौ लोगों की मौत हो गई जबकि अनेक गंभीर रूप से घायल हुए। रेलवे बोर्ड के मुताबिक शुरुआती जांच में जो जानकारी सामने आई है, उसके अनुसार इंजन के नीचे लगे ट्रैक्शन मोटर के गिरने के कारण यह हादसा हुआ। यह हादसा रेल तंत्र की लापरवाही को लेकर माथे पर चिंता की लकीरें इसलिए भी खींचता है क्योंकि विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है कि रोलिंग स्टॉक की समयबद्ध फिटनेस जांच होती है लेकिन इस ट्रेन के इंजन की संबंधित लोको शेड की ठीक प्रकार से फिटनेस जांच नहीं हुई, जिसके चलते यह दुर्घटना हुई। दुर्घटना के समय ट्रेन में 1200 से भी ज्यादा यात्री सवार थे लेकिन चूंकि हादसे के समय ट्रेन की गति कम थी अन्यथा रेल तंत्र की लापरवाही के कारण यह दुर्घटना बहुत बड़ी हो सकती थी। ऐसे हादसों में हर बार हताहतों की चीखें खोखले रेल तंत्र की कमियों को उजागर करते हुए समूचे रेल तंत्र को कटघरे में खड़ा करती रही हैं लेकिन उसके बावजूद रेल हादसों पर लगाम नहीं कसी जा रही। हालांकि कहा जा रहा है कि करीब 34 महीनों के बाद कोई रेल दुर्घटना हुई है लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। इस हादसे से पहले 22 अप्रैल, 2021 को लखनऊ-चण्डीगढ़ एक्सप्रेस ने बरेली-शाहजहांपुर के पास क्रॉसिंग पर कुछ वाहनों को टक्कर मार दी थी, जिसमें पांच लोगों की मौत हुई थी। उससे पहले 3 फरवरी 2019 को जोगबनी से दिल्ली जा रही सीमांचल एक्सप्रेस के 11 डिब्बे पटरी से उतरने से सात से अधिक यात्रियों की मौत हो गई थी। इस तथ्य को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि पिछले दो वर्षों में लॉकडाउन के दौरान जहां रेलों का परिचालन पूरी तरह बंद रहा, वहीं उसके बाद भी अभी तक बहुत सारी ट्रेनों का संचालन स्थगित है। ऐसे में इस तरह के हादसे कई सवाल खड़े करते हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या कोरोना के दौर में रेलों में सुविधाओं में कमी के साथ-साथ इनके रखरखाव में भी कोताही बरती जा रही है?हालांकि यह बात सही है कि लॉकडाउन और कोरोना के इस दौर में रेलवे को 36 हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है, जिससे रेलवे के इंफ्रास्ट्रक्चर का कुछ हद तक प्रभावित होना लाजिमी है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि सेवा में कोताही के कारण रेल यात्रा करने वाले सैंकड़ों लोगों की जिन्दगी दांव पर लगा दी जाए। वैसे भी कोरोना काल में सामान्य रेलों को भी स्पेशल ट्रेनों में तब्दील कर किरायों में बढ़ोतरी कर रेलवे ने इस दौरान अपने घाटे की भरपाई के प्रयास भी किए हैं। रेलवे बोर्ड पहले विभिन्न वर्गों को किराये में दी जाने वाली लगभग सभी रियायतें खत्म करके भी घाटे की भरपाई कर रहा है। फिर भी सुरक्षा के तमाम दावों के बावजूद रेल यात्रा को भरोसेमंद बनाए जाने में रेल तंत्र नाकाम साबित हो रहा है। सवाल यह भी उठ रहे हैं कि रेलों का परिचालन कम होने से नई पटरियां बिछाने का काम सही गति से नहीं चल रहा है और पटरियों के रखरखाव में भी कमी आई है। रेलों के जरिये प्रतिदिन न केवल करोड़ों लोग यात्रा करते हैं बल्कि यह माल ढुलाई का भी सबसे बड़ा साधन है। इसके बावजूद इस विशालकाय तंत्र को चुस्त-दुरुस्त और सुरक्षित बनाने पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता और अक्सर इसी के चलते भारत में रेल हादसे होते रहे हैं। इतने विशालतंत्र को दुरुस्त रखने के लिए रेलवे को प्रतिवर्ष 20 हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा की ज़रूरत होती है लेकिन विशेषज्ञ इसके आवंटन को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। प्रतिवर्ष बजट पेश करते समय रेल पटरियों के सुधार, सुरक्षा उपकरणों को पुख्ता करने तथा रेल यात्रा को सुगम व सुरक्षित बनाने के दावे किए जाते हैं। ऐसे में सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है कि फिर भी रेल हादसों पर लगाम क्यों नहीं लग रही? एक तरफ  तो देश में बुलेट ट्रेनें चलाने का दम भरा जाता है लेकिन दूसरी ओर पहले से मौजूद विस्तृत रेल तंत्र की अव्यवस्थाओं को दूर करने में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं दिखाई जाती।  भारत में एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष औसतन 300 छोटी-बड़ी रेल दुर्घटनाएं होती हैं, जिनमें से कई हर साल खराब मौसम के कारण तो कुछ तकनीकी गड़बड़ियों के कारण होती हैं। उत्तर प्रदेश के कानपुर में नवम्बर 2016 में पुखरायां रेलवे स्टेशन के पास हुए हादसे में इंदौर-पटना एक्सप्रेस के 14 डिब्बे पटरी से उतरने से 150 से ज्यादा लोगों की जान गई थी। बहरहाल बार-बार होते रेल हादसों की बहुत लम्बी फेहरिस्त है लेकिन चिंता की बात यह है कि ऐसे हर हादसे की जांच के लिए एक समिति का गठन होता है और फिर अगले हादसे के इंतज़ार में उस हादसे को भुला दिया जाता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



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