कितना कारगर है नया उपभोक्ता कानून?

 इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के लोकप्रिय अखबार ‘जनसत्ता’ के सम्पादकीय पेज पर इसका विश्लेषण करता विशेष लेख


योगेश कुमार गोयल

देशभर में तेजी से पांव पसारते आनलाइन कारोबार को पहली बार उपभोक्ता कानून के दायरे में लाया गया है। किसी भी उपभोक्ता की शिकायत मिलने पर अब ई-कारोबारी कंपनी को अड़तालीस घंटे के भीतर उस शिकायत को स्वीकार करना होगा और एक महीने के भीतर उसका निस्तारण भी करना होगा।

केंद्र सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत जिला उपभोक्ता अदालतों के क्षेत्राधिकार को नए सिरे से तय किया गया है। केंद्र ने यह बदलाव उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत करते हुए उपभोक्ता संरक्षण नियम 2021 अधिसूचित किया है। दरअसल अभी तक जिला उपभोक्ता आयोग को एक करोड़ रुपए तक के मामलों की शिकायतों की सुनवाई करने का अधिकार था, जबकि राज्य उपभोक्ता आयोग को एक से दस करोड़ और राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में दस करोड़ रुपए से ज्यादा की शिकायतों की सुनवाई का अधिकार था।

नए प्रावधानों के मुताबिक अब जिला आयोग को पचास लाख, राज्य आयोग को पचास लाख से दो करोड़ और राष्ट्रीय आयोग को दो करोड़ रुपए से अधिक मूल्य वाले उत्पादों तथा सेवाओं से संबंधित शिकायतें सुनने का अधिकार होगा। दरअसल केंद्र का तर्क है कि पुराने नियमों के तहत शिकायतों की सुनवाई की ऊंची सीमा रखे जाने से जिला और राज्य स्तरीय उपभोक्ता आयोगों के पास मामले काफी बढ़ गए थे और ये बदलाव उपभोक्ताओं की शिकायतों के त्वरित निपटारे के लिए किए गए हैं।



वैसे तो बाजार में उपभोक्ताओं को शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए कई कानून बनाए गए। लेकिन जब से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 अस्तित्व में आया, तब से उपभोक्ताओं को शीघ्र, त्वरित व कम खर्च पर न्याय दिलाने का मार्ग तो प्रशस्त हुआ ही, साथ ही उपभोक्ताओं को किसी भी प्रकार की सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियां व प्रतिष्ठान भी अपनी सेवाओं और उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करने के प्रति सचेत हुए। लेकिन इतना सब कुछ होने के बावजूद उपभोक्ता का शोषण होने का सिलसिला थमा नहीं।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 लागू होने के बाद भी उपभोक्ता अधिकारों को मजबूती प्रदान करने के लिए निरंतर मांग उठती रही। आखिरकार 20 जुलाई 2020 को केंद्र सरकार ने ‘उपभोक्ता संरक्षण कानून-2019’ (कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट-2019) लागू किया। संसद ने वर्ष 2019 में ही ‘उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2019’ को मंजूरी दे दी थी और नया कानून पहले जनवरी 2020 में और फिर बाद में मार्च 2020 में लागू किया जाना तय किया गया।

लेकिन मार्च में कोरोना महामारी की दस्तक और फिर पूर्णबंदी के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका। अंतत: 20 जुलाई 2020 को नया उपभोक्ता कानून अस्तित्व में आया और ग्राहकों के साथ आए दिन होने वाली धोखाधड़ी को रोकने के लिए बने नए कानून ने चौंतीस साल पुराने ‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986’ का स्थान लिया। नए कानून के तहत जिला उपभोक्ता फोरम में एक करोड़ रुपए तक के मामले, जबकि राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में एक करोड़ से दस करोड़ तक के और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में दस करोड़ रुपए से ऊपर के मामलों की सुनवाई का प्रावधान किया गया। अब नई अधिसूचना के तहत इसी आर्थिक क्षेत्राधिकार को नए सिरे से निर्धारित किया गया है।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 में उपभोक्ताओं को किसी भी प्रकार की ठगी और धोखाधड़ी से बचाने के लिए उपभोक्ता अधिकारों, अनुचित व्यापार प्रथाओं और भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों में पूछताछ और जांच करने के लिए उपभोक्ता अदालतों के साथ-साथ एक सलाहकार निकाय के रूप में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) की स्थापना की व्यवस्था की गई है। नए कानून में खाने-पीने की वस्तुओं में मिलावट करने वाली कंपनियों और भ्रामक विज्ञापनों पर निर्माता तथा विज्ञापन करने वाले पर जुर्माने और सख्त सजा जैसे प्रावधान भी जोड़े गए हैं।

इन प्रावधानों के मुताबिक कंपनी अपने जिस उत्पाद का प्रचार कर रही है, वह वास्तव में उसी गुणवत्ता वाला है या नहीं, इसकी जवाबदेही विज्ञापन करने वाले की भी होगी। भ्रमित करने वाले विज्ञापनों पर उपभोक्ता कानून में सीसीपीए को अधिकार दिया गया है कि वह जिम्मेदार व्यक्तियों को दो से पांच साल की सजा के साथ कंपनी पर दस लाख रुपए तक का जुर्माना लगा सके। यही नहीं, बड़े और ज्यादा गंभीर मामलों में जुर्माने की राशि पचास लाख रुपए तक भी संभव है। सीसीपीए के पास उपभोक्ता अधिकारों की जांच करने के अलावा वस्तु और सेवाओं को वापस लेने का अधिकार भी होगा।

देशभर में तेजी से पांव पसारते आनलाइन कारोबार को पहली बार उपभोक्ता कानून के दायरे में लाया गया है। किसी भी उपभोक्ता की शिकायत मिलने पर अब ई-कारोबारी कंपनी को अड़तालीस घंटे के भीतर उस शिकायत को स्वीकार करना होगा और एक महीने के भीतर उसका निस्तारण भी करना होगा। अगर कोई ई-कारोबार कंपनी ऐसा नहीं करती है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। यह नियम उन कंपनियों पर भी लागू होगा जो भले ही विदेशों में पंजीकृत हों, लेकिन भारतीय ग्राहकों को सामान और सेवाएं दे रही हैं।

ई-व्यापार नियमों के तहत ई-कारोबारियों के लिए उत्पाद का मूल्य, उसकी समाप्ति तिथि, उसे लौटाने, पैसे लौटाने, बदलने, वारंटी-गारंटी, वितरण, भुगतान के तरीके, शिकायत निवारण तंत्र, भुगतान के तरीकों के बारे में विवरण प्रदर्शित करना जैसे कदमों को अनिवार्य किया गया। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (ई-कामर्स) नियमावली 2020 में स्पष्ट व्यवस्था है कि ई-वाणिज्य मंच का परिचालन करने वाली प्रत्येक कंपनी को अपने उपभोक्ताओं के लिए मंच से जुड़े सामान विक्रेताओं द्वारा नियम 6 के उप नियम 5 के तहत प्राप्त सभी सूचनाओं को प्रमुख स्थान पर दर्शाने की व्यवस्था की जाए। इन नियमों के तहत सरकार द्वारा ई-कामर्स मंचों के लिए भारत में शिकायत निवारण अधिकारी की नियुक्ति किया जाना अनिवार्य है, नोडल अधिकारी की नियुक्ति का नोटिफिकेशन 17 मई 2021 को लागू हो चुका है।

नया उपभोक्ता कानून लागू होने के बाद ई-कारोबार कंपनियों के खिलाफ सामान की गुणवत्ता, पहुंचाने में देरी, सामान बदलने में देरी इत्यादि को लेकर शिकायतों का अंबार लगा है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के अनुसार राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन (एनसीएच) पर दर्ज प्रत्येक पांच में से एक शिकायत ई-कारोबारी कंपनियों के खिलाफ है।

राज्यसभा में उपभोक्ता मामलों और खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मामलों के राज्यमंत्री अश्विनी चौबे ने एक सवाल के जवाब में बताया भी था कि अप्रैल 2019 से नवंबर 2021 के बीच ई-कारोबार कंपनियों के खिलाफ पांच लाख बार हजार नौ सौ उन्नीस शिकायतें दर्ज की गर्इं। ई-कामर्स कंपनियों के खिलाफ सर्वाधिक चौंसठ हजार नौ सौ चौबीस शिकायतें महाराष्ट्र में, उसके बाद उत्तर प्रदेश में तिरसठ हजार दो सौ पैंसठ और दिल्ली में पचास हजार से ज्यादा शिकायतें दर्ज हुई। ज्यादातर राज्यों में यह आंकड़ा बीस से तीस हजार का था।

हालांकि नया उपभोक्ता कानून लागू होने के बाद उम्मीद की गई थी कि यह जहां देश के उपभोक्ताओं को और ज्यादा ताकतवर बनाएगा, वहीं इसके तहत उपभोक्ता विवादों को समय पर और प्रभावी एवं त्वरित गति से सुलझाने में मदद भी मिलेगी। लेकिन पिछले दिनों जिस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों के उपभोक्ता संरक्षण आयोगों तथा पंचाटों में खाली पदों को लेकर कड़ी टिप्पणी की, उससे स्पष्ट है कि उपभोक्ता अधिकारों को नई ऊंचाई प्रदान करने के लिए सरकार को गंभीरता दिखानी होगी।

अदालत ने कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा था कि यदि ये रिक्तियां भरी नहीं जा सकती तो सरकार को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ही रद्द कर देना चाहिए। कई अन्य देशों की तुलना में भारत में उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरूकता अपेक्षित रूप से पहले ही काफी कम है, ऐसे में यदि उपभोक्ता संरक्षण आयोगों और पंचाटों में पद खाली पड़े रहेंगे तो उपभोक्ताओं की शिकायतों पर सुनवाई कब होगी? ऐसी परिस्थितियों में त्वरित न्याय का सपना तो सपना ही बन जाएगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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