उड़ते ताबूतों को कब तक ढ़ोती रहेगी वायुसेना?
आसमान में उड़ते ताबूत बने हैं मिग विमान
- योगेश कुमार गोयल -
पिछले दिनों राजस्थान में पाकिस्तान सीमा से सटे जैसलमेर जिले में सुदासरी नेशनल डेजर्ट पार्क के पास वायुसेना का एक और लड़ाकू विमान मिग-21 दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। दरअसल पायलट विंग कमांडर हर्षित सिन्हा ने अभ्यास के लिए उड़ान भरी ही थी लेकिन मिग विमान में तकनीकी खराबी के कारण विमान गिरते ही धमाके के साथ उसमें आग लग गई और इस हादसे में पायलट की मौत हो गई। हालांकि वायुसेना द्वारा आनन-फानन में इस दुर्घटना की जांच के आदेश दे दिए गए किन्तु सबसे बड़ी चिंता की बात यही है कि मिग विमान बार-बार दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं, फिर भी इन्हें ढ़ोते रहना वायुसेना की मजबूरी है। इससे पूर्व 25 अगस्त को प्रशिक्षण उड़ान के दौरान राजस्थान के बाड़मेर जिले के भूरटिया गांव में एक मिग-21 दुर्घटना का शिकार हुआ था। हादसे में विमान एक झोंपड़ी पर गिरने के बाद विमान में आग गई थी लेकिन हादसे में पायलट सुरक्षित बच गया था। 20 मई को भी पंजाब में मोगा जिले के लंगियाना खुर्द गांव के पास एक मिग-21 दुर्घटनाग्रस्त हुआ था, जिसमें विमान नष्ट होने के अलावा पायलट स्क्वाड्रन लीडर अभिनव चौधरी की मौत हो गई थी।लगातार हो रहे मिग विमानों के ऐसे हादसों के बाद वायुसेना द्वारा हर बार इन हादसे के कारणों का पता लगाने के लिए कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के आदेश दिए जाते रहे हैं लेकिन इस तरह के हादसों के बाद महत्वपूर्ण सवाल बार-बार यही उठता है कि इन विमानों के लगातार दुर्घटनाग्रस्त होने के बावजूद इन्हें वायुसेना से क्यों नहीं हटाया जाता? दरअसल जैसलमेर, बाड़मेर और मोगा के पास हुआ मिग हादसा कोई पहला, दूसरा या तीसरा हादसा नहीं हैं बल्कि इन हादसों के पहले भी वर्ष 2021 में दो और मिग-21 दुर्घटनाग्रस्त हुए, जिनमें एक पायलट तो अपनी जान बचाने में सफल रहा था लेकिन दूसरे में पायलट की मौत हो गई थी। स्थिति इतनी खराब है कि अभी तक वायुसेना ऐसे ही हादसों में पांच सौ से भी ज्यादा मिग-21 विमानों और अपने दो सौ से भी ज्यादा जांबाज पायलटों को खो चुकी है, जो कि वायुसेना के लिए बहुत भारी क्षति है।
अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए भारतीय वायुसेना को करीब दो सौ अत्याधुनिक विमानों की जरूरत है और राफेल, सुखोई तथा तेजस जैसे स्वदेशी विमानों की पूरी खेप मिल जाने के बाद ही वायुसेना की कमी काफी हद पूरी हो सकेगी लेकिन अभी इसमें लंबा समय लगेगा। जहां तक मिग विमानों की बात है तो भारत का सोवियत संघ के साथ 1961 में मिग-21 विमानों के लिए ऐतिहासिक सौदा हुआ था और वायुसेना को 1964 में पहला सुपरसोनिक मिग-21 विमान प्राप्त हुआ था। भारत ने रूस से 872 मिग विमान खरीदे थे, जिनमें से अधिकांश क्रैश हो चुके हैं। इन विमानों ने 1971 की लड़ाई से लेकर कारगिल युद्ध सहित कई विपरीत परिस्थितियों में अपना लोहा मनवाया और बहुत पुराने होने के बावजूद फरवरी 2019 में पाकिस्तान के एफ-16 लड़ाकू विमान को मार गिराकर अपनी सफलता की कहानियों में एक और अध्याय जोड़ दिया था किन्तु अब ये इतने पुराने हो चुके हैं कि पिछले कुछ वर्षों में ही कई हादसों में हम अनेक मिग विमान और सैंकड़ों बेशकीमती पायलट खो चुके हैं। यही कारण हैं कि पांच दशक से ज्यादा पुराने इन मिग विमानों को बदलने की मांग लंबे समय से हो रही है किन्तु वायुसेना के लिए लड़ाकू विमानों की कमी के चलते इनकी सेवाएं लेते रहना वायुसेना की मजबूरी रही है। वायुसेना का कहना है कि मिग बाइसन विमानों को छोड़कर 2030 तक चरणबद्ध तरीके से अन्य सभी मिग विमानों को भी हटाया जाएगा।
पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ ने करीब ढ़ाई साल पहले अपने कार्यकाल के दौरान वायुसेना के बेड़े में शामिल दशकों पुराने मिग लड़ाकू विमानों को लेकर चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि हमारी वायुसेना जितने पुराने मिग विमानों को उड़ा रही है, उतनी पुरानी तो कोई कार भी नहीं चलाता। उक्त कथन वायुसेना प्रमुख ने दिल्ली में ‘भारतीय वायुसेना का स्वदेशीकरण और आधुनिकीकरण योजना’ विषय पर आयोजित एक सेमिनार में व्यक्त किए थे। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की उपस्थिति में उनका कहना था कि भारतीय वायुसेना की स्थिति बिना लड़ाकू विमानों के बिल्कुल वैसी ही है, जैसे बिना फोर्स की हवा। धनोआ का स्पष्ट कहना था कि दुनिया को अपनी हवाई ताकत दिखाने के लिए हमें अभी और अधिक आधुनिक लड़ाकू विमानों की आवश्यकता है। उनके मुताबिक मिग विमानों का निर्माता देश रूस भी अब मिग-21 विमानों का उपयोग नहीं कर रहा है लेकिन भारत इन विमानों को अभी तक उड़ा रहा है क्योंकि हमारे यहां इनके कलपुर्जे बदलने और मरम्मत की सुविधा है। हालांकि उनकी इस टिप्पणी को अगर बहुत पुरानी कारों का इस्तेमाल न किए जाने से जोड़कर देखें तो उसका सीधा सा अर्थ है कि जब कलपुर्जे बदलकर मरम्मत के सहारे इतनी पुरानी कार को चलाना ही किसी भी दृष्टि से किफायती या उचित नहीं माना जाता तो मिग-21 विमानों को कैसे माना जा सकता है?
फिलहाल वायुसेना के पास मिग-21 के अलावा सौ से ज्यादा मिग-23, मिग-27 और मिग-29 विमान हैं जबकि करीब 112 मिग बाइसन हैं। मिग बाइसन चूंकि अपग्रेड किए हुए मिग विमान हैं, इसलिए उनका इस्तेमाल जारी रहेगा लेकिन बाकी सभी मिग विमानों को चरणबद्ध तरीके से वायुसेना से बाहर किया जाएगा। करीब एक दशक पहले मिग विमानों को बाइसन मानकों के अनुरूप अपग्रेड करना शुरू कर उनमें रडार, दिशासूचक क्षमता इत्यादि बेहतर की गई थी किन्तु अपग्रेडेशन के बावजूद वास्तविकता यही है कि मिग विमानों की उम्र बहुत पहले ही पूरी हो चुकी है। हालांकि मिग अपने समय के उच्चकोटि के लड़ाकू विमान रहे हैं लेकिन अब ये विमान इतने पुराने हो चुके हैं कि सामान्य उड़ान के दौरान ही क्रैश हो जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में ही मिग विमानों की इतनी दुर्घटनाएं हो चुकी हैं कि अब इन्हें ‘हवा में उड़ने वाला ताबूत’ भी कहा जाता है। आज के समय में ऐसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों की जरूरत है, जो छिपकर दुश्मन को चकमा देने, सटीक निशाना साधने, उच्च क्षमता वाले राडार, बेहतरीन हथियार, ज्यादा वजन उठाने की क्षमता इत्यादि सुविधाओं से लैस हों जबकि मिग का न तो इंजन विश्वसनीय है और न इनसे सटीक निशाना साधने वाले उन्नत हथियार संचालित हो सकते हैं।
रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो मिग विमान 1960 और 70 के दशक की तकनीक के आधार पर निर्मित हुए थे जबकि अब हम 21वीं सदी के भी दो दशक पार कर चुके हैं और पुरानी तकनीक वाले ऐसे मिग विमानों को ढ़ो रहे हैं, जिनका आधुनिक तकनीक से निर्मित लड़ाकू विमानों से कोई मुकाबला नहीं है। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक अपनी वायुसेना को गंभीरता से लेने वाले देशों में भारत संभवतः आखिरी ऐसा देश है, जो अब तक मिग-21 जैसे बहुत पुराने लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल करता रहा है। सही मायनों में मिग विमानों को 1990 के दशक में ही सैन्य उपयोग से बाहर कर दिया जाना चाहिए था क्योंकि हर लड़ाकू विमान की एक उम्र मानी जाती है और मिग विमानों की उम्र दो दशक से ज्यादा समय पहले ही पूरी हो चुकी है लेकिन हम इन्हें अपग्रेड कर इनकी उम्र बढ़ाने की कोशिश करते रहे हैं और तमाम ऐसी कोशिशों के बावजूद इनकी कार्यप्रणाली धोखा देती रही है, जिसका नतीजा मिग विमानों की अक्सर होती दुर्घटनाओं के रूप में बार-बार देखा जाता रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा सामरिक मामलों के विश्लेषक हैं)
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