मानें या न मानें यह सच है


‘सिक बिल्डिंग सिंड्रोम’ का खतरा कम करती हैं अल्ट्रावायलेट किरणें

अल्ट्रावायलेट किरणों को सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जाता लेकिन एक अनुसंधान में कनाडा के वैज्ञानिकों ने पाया है कि अल्ट्रावायलेट किरणें ‘सिक बिल्डिंग सिंड्रोम’ का खतरा कम कर देती हैं। सिक बिल्डिंग सिंड्रोम एक व्यापक शब्द है, जो यह उस घटना के लिए प्रयुक्त किया जाता है, जब किसी कार्यस्थल में पाए जाने वाले किसी खास पदार्थ, रसायन, बैक्टीरिया, वायरस या फंगी के कारण उस बिल्डिंग या ऑफिस में कार्यरत कर्मचारी बीमार हो जाएं। सिक बिल्डिंग सिंड्रोम की आशंका उन बिल्डिंग्स में अधिक होती है, जिन्हें ऊर्जा की बचत के लिए एयरटाइट कर दिया जाता है।

कनाडा की मैक्गिल यूनिवर्सिटी में मांट्रियल चेस्ट इंस्टीच्यूट में मेडिसन के प्रो. डा. डिक मेंजाइस और उनके सहयोगियों ने ऐसे ही एक अनुसंधान में पाया है कि यदि बड़ी बिल्डिंग्स के वेंटीलेशन सिस्टम में अल्ट्रावायलेट प्रकाश पैदा कर दिया जाए तो इससे सिक बिल्डिंग सिंड्रोम का खतरा काफी कम हो जाता है। इसकी वजह यह है कि वेंटीलेशन सिस्टम के एयरकंडीशनर ही वह जगह होती है, जहां ज्यादातर बैक्टीरिया, वायरस या फंगी रहते हैं। इस अनुसंधान के लिए डा. मेंजाइस ने मांट्रियल की तीन बड़ी ऑफिस बिल्डिंग्स के एयरकंडीशनिंग सिस्टम में अल्ट्रावायलेट जर्मीसाइडल इर्रेडिएशन सिस्टम लगाया। यह सिस्टम अल्ट्रावायलेट किरणें उत्पन्न करता है। एक साल की अवधि में इस सिस्टम को इस तरह से चलाया गया कि यह एक महीने चालू रहता था, फिर इसे तीन महीनों के लिए बंद कर दिया जाता था। इन तीनों बिल्डिंग्स में कार्यरत 771 कर्मचारियों का सालभर तक स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता रहा। डा. मेंजाइस ने पाया कि जिस समय अल्ट्रावायलेट जर्मीसाइडल इर्रेडिएशन सिस्टम चालू रहता था, उस समय कर्मचारियों को होने वाली सामान्य बीमारियों में 20 प्रतिशत की कमी हो जाती थी। इसके अलावा इस दौरान कर्मचारियों को होने वाली एलर्जी और कान, नाक व गले से संबंधित बीमारियों में भी 30 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई।

डा. मेंजाइस के अनुसार इसकी वजह यह थी कि इन बिल्डिंग्स के एयरकंडीशनिंग सिस्टम में ही वे 99 प्रतिशत बैक्टीरिया या फंगी रहते हैं, जो सर्दी, जुकाम, एलर्जी या श्वसन तंत्र से संबंधित समस्याएं पैदा करते हैं। जब अल्ट्रावायलेट जर्मीसाइडल इरेडिएशन सिस्टम को चालू किया जाता था तो उससे निकलने वाले अल्ट्रावायलेट प्रकाश के कारण ये बैक्टीरिया या फंगी मर जाते थे। एक हजार कर्मचारियों वाली किसी बिल्डिंग के लिए एक अल्ट्रावायलेट जर्मीसाइडल इर्रेडिएशन सिस्टम लगाने में करीब 52 हजार डालर का खर्च आता है जबकि इस सिस्टम को सालभर चलाने में 14 हजार डालर का खर्च आता है लेकिन यदि इसकी वजह से हर कर्मचारी द्वारा सेहत खराब होकर ली जाने वाली एक दिन की छुट्टी भी बचा ली जाए तो इस खर्च की पूर्ति हो जाती है। (मीडिया केयर नेटवर्क)

हिंसा देखने व भोगने वाले बच्चों को अधिक होती हैं व्यवहारगत समस्याएं

अमेरिका में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि जो बच्चे हिंसा होते देखते या भोगते हैं, बड़े होने पर उन्हें व्यवहारगत समस्याएं अन्य बच्चों की अपेक्षा अधिक होती हैं। अल्बर्ट आइंसटीन कॉलेज ऑफ मेडिसन के चिल्ड्रंस हॉस्पिटल के ऑस्कर एच पुरूगनन के अनुसार स्कूल जाने वाले छात्रों द्वारा हिंसा देखने या भोगने और उनके मनोवैज्ञानिक असर में काफी गहरा रिश्ता होता है। इस अध्ययन में 9 से 12 वर्ष के 175 बच्चों को शामिल किया गया था। अध्ययन से यह भी पता चला कि हिंसा का शिकार होने वाले किसी व्यक्ति के साथ बच्चे की निकटता या दूरी का उसकी मानसिक स्थिति और व्यवहारगत मानसिकता पर कोई विशेष असर नहीं पड़ता है। शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन के लिए इन बच्चों का साक्षात्कार किया तो पाया कि जो बच्चे स्वयं हिंसा का शिकार हुए थे, उनको सबसे ज्यादा व्यवहारगत समस्याएं हुई थी। उनकी अपेक्षा ऐसे बच्चों की स्थिति थोड़ी अच्छी थी, जो हिंसा के साक्षी बने थे। डा. पुरूगनन के अनुसार हिंसा भोगने वाले 86 बच्चों में से 16 की दशा काफी दयनीय थी जबकि हिंसा देखने वाले 60 बच्चों में से 7 ही व्यवहारगत समस्या के शिकार हुए थे। उनके अनुसार अब जबकि हिंसा की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, बाल चिकित्सकों की ऐसे में यह जिम्मेदारी बनती है कि वे बच्चों में ऐसी समस्याएं विकसित होने से रोकने का प्रयास करें। (मीडिया केयर नेटवर्क)
प्रस्तुति: योगेश कुमार गोयल

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