कड़वे सच का एक विश्वसनीय दस्तावेज


चर्चित पुस्तक

कड़वे सच का एक विश्वसनीय दस्तावेज

‘तीखे तेवर’

लेखक ने जो कुछ कहा है, वह पूरी वैचारिक ऊर्जा के साथ कहा है, जिसके कारण चिंतन की निष्पक्षता एवं स्वतंत्रता का ग्रंथ के हर पृष्ठ पर आस्वादन किया जा सकता है।

चर्चित पुस्तक: तीखे तेवर

लेखक: योगेश कुमार गोयल

पृष्ठ संख्या: 160 (सजिल्द)

प्रकाशन वर्ष: नवम्बर, 2009

मूल्य: 150 रुपये

प्रकाशक: मीडिया एंटरटेनमेंट फीचर्स, बादली, जिला झज्जर (हरियाणा)-124105.

भूमिका लेखन: डा. राधेश्याम शुक्ल, सम्पादक दैनिक स्वतंत्र वार्ता, हैदराबाद

देश के प्रतिष्ठित पत्रकार एवं लेखक श्री योगेश कुमार गोयल, जो एक प्रख्यात समाचार-वृत्त एवं लेख सेवा के समूह सम्पादक भी हैं, सामाजिक तथा अनेक सामयिक विषयों पर विश्लेषणात्मक टिप्पणियों एवं सृजनात्मक लेखन के लिए पाठकों के हृदय में एक विशिष्ट स्थान बना चुके हैं। ‘तीखे तेवर’ में संकलित किए गए उनके 25 आलेखों का फलक विस्तृत है व उनमें एक स्वस्थ तथा संवेदनशील समाज की संरचना के प्रति एक अनूठी जागरूकता प्रदर्शित की गई है, जो लेखों के साभिप्राय शीर्षक स्वयं भली-भांति व्याख्यायित करते हैं। उनकी अभिव्यक्ति की एक विशिष्टता यह है कि चाहे जातीय या धार्मिक हिंसा का प्रश्न हो या कोई दूसरा सामाजिक सरोकार, वे अपने शब्दों और विचारों को संवेदनशीलता के साथ-साथ एक सहज तटस्थता के साथ पाठकों के समक्ष रखते हैं।

राष्ट्रीय अखण्डता और मीडिया की भूमिका से लेकर चाहे अंधविश्वासों या मादक पदार्थों का प्रश्न हो अथवा जल के लिए अगले सम्भावित युद्ध पर विमर्श हो, श्री गोयल जिस सदाशयता और व्यापक दृष्टि से हल की तलाश करते हैं, वह बहुधा विस्मयजनक प्रतीत होता है। समाज में व्याप्त अनेक विसंगतियां एवं अंतर्विरोध श्री गोयल के तीखे कटाक्षों से नहीं बच सके हैं। अपनी व्यापक दृष्टि के साथ जहां एक ओर वे अपनी बेबाक टिप्पणियों में विचारधारा की कट्टरता को चुनौती देने से नहीं चूकते हैं, वहीं अनेक ज्वलंत मुद्दों पर उनका प्रखर चिंतन पाठकों को कुछ नया सोचने को विवश करता है।

ऐसा लगता है कि लेखक के अपने चिंतन की विचारोत्तेजक प्राथमिकताओं में जिन विषयों को गहराई से छुआ गया है, उसमें पर्यावरण, देश की जैव सम्पदा का संरक्षण, बिगड़ता वातावरण, प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती संख्या, ग्लोबल वार्मिंग आदि प्रमुख हैं। इनका आज के सामाजिक परिवेश में अपना महत्व है। निर्विवाद रूप से श्री गोयल के यशस्वी लेखन में पारदर्शिता और सामाजिक चेतना के स्वर इस ग्रंथ के हर पृष्ठ पर अंकित दिखते हैं।

यह कहने का लोभ संवरण नहीं किया जा सकता है कि यह कृति अध्येताओं और शोध से जुड़े स्नातकोत्तर छात्रों के लिए भी उतनी ही उपयोगी साबित होगी, जितना सामान्य प्रबुद्ध पाठक को लाभ दे सकती है। लेखक ने जो कुछ कहा है, वह पूरी वैचारिक ऊर्जा के साथ कहा है, जिसके कारण चिंतन की निष्पक्षता एवं स्वतंत्रता का ग्रंथ के हर पृष्ठ पर आस्वादन किया जा सकता है। यह सिर्फ दोहराने की बात है कि सुधारवादी चिंतन और पत्रकारिता, व्यावसायिकता से दूर, श्री गोयल की दिनचर्या के दो असली मोर्चे प्रतीत होते हैं। डा. राधेश्याम शुक्ल ने अपनी विद्वतापूर्ण भूमिका में कदाचित इसी आग्रह-मुक्त विश्लेषण के संतुलन को संघर्षशील पत्रकारिता की संज्ञा दी है, जिसके श्री गोयल सक्षम एवं समर्थ पात्र माने गए हैं। क्योंकि इस ग्रंथ में लेखक की पीड़ा, क्षोभ और सामाजिक विकृतियों के निराकरण की तीव्र आकांक्षा व्याप्त है, पाठकों के मन की बहुत सी उलझनों के सही और स्पष्ट उत्तर मिल सकते हैं, ऐसी आशा है। यद्यपि आज के परिदृश्य में श्रव्य, दृश्य और मुद्रित मीडिया किस तरह बाजारवाद का शिकार हो चुका है पर फिर भी लोकतांत्रिक परम्पराओं की रक्षा का उत्तरदायित्व सजग, सचेत और निर्भीक पत्रकारिता के लिए प्रतिबद्ध व्यक्तियों पर ही है।

गत वर्ष सन् 2009 में ही श्री गोयल की एक पुस्तक ‘जीव-जंतुओं की अनोखी दुनिया’ शीर्षक से प्रकाशित हुई थी, जिसमें जैविक विविधता के नए खतरों व प्राणियों तथा वनस्पतियों की अनेक प्रजातियों के लुप्त होने तथा पर्यावरण की क्षति के अनेक आयामों पर प्रकाश डाला गया था। हमारे देश में तो जीव-जंतुओं को सम्पदा के रूप में ही नहीं बल्कि सहजीवी प्राणियों के रूप में प्राचीन काल से देखा जाता है। लेखक की उपर्युक्त पुस्तक और समीक्षित ग्रंथ, दोनों में ही होने वाले बदलावों के विरूद्ध चेतावनी भी दी गई हैं।

इसी कड़ी में श्री गोयल की 1993 में प्रकाशित पुस्तक ‘मौत को खुला निमंत्रण’ नशे के दुष्प्रभावों पर थी, जिसे पांच विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत किया गया था। पत्रकारिता व साहित्य के क्षेत्र में श्री गोयल को अनेक संगठनों द्वारा पुरस्कृत व सम्मानित किया जा चुका है। वे मीडिया केयर ग्रुप, बादली, झज्जर (हरियाणा) में प्रधान सम्पादक हैं।

कुल मिलाकर ‘तीखे तेवर’ एक बहुमूल्य कृति है, जो हर हिन्दी भाषी के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय भी है, मात्र पुस्तकालयों की शोभा बढ़ाने के लिए नहीं!

- हरिकृष्ण निगम
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक हैं)

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