गर्भ में ही ठीक हो सकेगी शिशु के फेफड़ों की विकृति?


गर्भस्थ शिशुओं में होने वाली एक अज्ञात विकृति की वजह से उनके फेफड़ों का विकास अवरूद्ध हो जाता है और उनके जीवित बचने की संभावना भी कम हो जाती है। गर्भस्थ शिशुओं की इस बीमारी को ‘कॉन्जेनिटल डायफ्राम हर्निया’ (सीडीएच) कहा जाता है। अब ऐसे शिशुओं को बचाने के लिए ल्यूवेन के अलावा लंदन तथा बार्सिलोना में भी गर्भ में ही एक ऐसा ऑपरेशन किया जाने लगा है, जिससे फेफड़ों का सही विकास सुनिश्चित हो सके। डॉक्टर इस ऑपरेशन के जरिये इस विकृति से पीड़ित करीब 60 फीसदी बच्चों को बचाने में सफल भी रहे हैं, जिनकी मौत सुनिश्चित मानी जा रही थी।

यह ऑपरेशन करने वाले डा. काइप्रोस निकोलैड्स का कहना है कि प्रतिवर्ष करीब 3000 गर्भस्थ बच्चों के फेफड़ों का विकास नहीं हो पाता और ऐसा क्यों होता है, इसका कारण अभी तक पता नहीं चल सका है। रूटीन स्क्रीनिंग के दौरान जिन शिशुओं में इसकी पहचान हो जाती है, उनमें से आधे ही जीवित बच पाते हैं। इस बीमारी में गर्भस्थ शिशु के डायफ्राम, जो कि पेट के क्षेत्र को सीने के क्षेत्र से अलग करता है, में एक छेद होता है। इस छेद के कारण पेट के क्षेत्र के अंग सीने के क्षेत्र की तरफ आने लगते हैं और फेफड़ों को दबा देते हैं, जिससे इनका विकास रूक जाता है।

इस बीमारी के इलाज के लिए गर्भावस्था के 26वें सप्ताह में एक की-होल ऑपरेशन करके शिशु के मुंह के जरिये एक गुब्बारा उसके फेफड़े में डाला जाता है ताकि विण्ड पाइप को अवरूद्ध किया जा सके। इस गुब्बारे को फेफड़े में फुलाकर वहीं छोड़ दिया जाता है, जिससे फेफड़े में होने वाला स्राव विण्ड पाइप के जरिये बाहर नहीं निकल पाता और इससे फेफड़ों को विकसित करने का पूरा अवसर मिलता है। बच्चे के जन्म के तुरंत बाद इस गुब्बारे को फोड़ दिया जाता है या इसे निकाल दिया जाता है और कुछ दिनों बाद एक छोटा सा ऑपरेशन करके डायफ्राम का छेद बंद कर दिया जाता है।

डा. निकोलैड्स के मुताबिक फेफड़े में होने वाले स्राव में विकास हारमोन होते हैं, जो मुंह और नाक के जरिये बाहर निकल जाते हैं, इसलिए हम लोगों ने इस स्राव को फेफड़े में ही रोकने का प्रयास करने का फैसला किया। डा. निकोलैड्स बताते हैं कि पहले 10 ऑपरेशनों में सफलता का प्रतिशत महज 30 था, जो बाद में बढ़कर 63.6 हो गया।
 
प्रस्तुति: योगेश कुमार गोयल

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