जीव-जंतुओं की अनोखी दुनिया - 42



चींटियों की रहस्यमयी दुनिया
. योगेश कुमार गोयल (मीडिया केयर नेटवर्क)

चींटियां सम्पूर्ण विश्व में पाई जाती हैं, फिर चाहे हमारे रिहायशी स्थान होें, समतल भूमि हो या नदी-घाटियां, ऊंचे-ऊंचे दुर्गम पहाड़, वर्षा वन या तपते रेगिस्तान। हां, अलग-अलग स्थान पर इनकी अलग-अलग प्रजातियां अवश्य देखने को मिल जाती हैं। विश्वभर में चींटियों की अब तक 9 हजार से भी अधिक प्रजातियों की खोज की जा चुकी है। धरती पर इनकी संख्या कितनी ज्यादा है, इस बारे में जानकर तो आप चैंक ही उठेंगे। जीव विज्ञानी बताते हैं कि हर इंसान के पीछे करीब 10 लाख चींटियां हैं। अब आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं कि दुनियाभर में चींटियों की तादाद कितनी है। इनकी संचार व्यवस्था तो बेहद जटिल होती है और इनका संदेश देने का तरीका बहुत निराला। संदेश देने के लिए ये अपने एंटीना को आपस में मिलाती हैं, जिनसे रासायनिक द्रव्यों का आदान-प्रदान होता है और इन्हीं रसायनों के जरिये एक-दूसरे तक संदेश पहुंचाया जाता है। संदेशों के आदान-प्रदान के लिए ही हर चींटी के सिर पर दो एंटीना होते हैं। चींटियों की शारीरिक संरचना भी कमाल की होती है। इनकी कमर बेहद पतली और नाजुक होती है, जिससे इनके शरीर का आगे और पीछे का हिस्सा जुड़ा होता है। इनकी दो जोड़ी संयुक्त आंखें तथा तीन एकल आंखें होती हैं जबकि इनके पैरों की संख्या 6 होती है। सिर्फ नर चींटियां और रानी चींटी ही ऐसी होती हैं, जिनके पंख होते हैं। चींटियों की टांगें लंबी होती हैं, जिस कारण ये तेज गति से चलने में सक्षम होती हैं।
चींटियों की सबसे बड़ी विशेषता है इनका अनुशासन प्रिय होना। हालांकि चींटियां विशाल समुदाय और बड़े-बड़े समूहों में रहती हैं, फिर भी ये कड़े अनुशासन का पालन करती हैं और अपनी-अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाती हैं। चींटियों के कुछ समूह तो बेहद विशाल होते हैं, जिनमें एक-एक समूह में 25-30 करोड़ की संख्या में चींटियां होती हैं। चींटियों की एक और बड़ी खासियत यह है कि ये अपने शरीर के भार से 50-60 गुना अधिक भार उठाने में सक्षम होती हैं।
चींटियों की एक और विशेषता यह होती है कि ये अपने बिलों से बहुत दूर जाकर भी बड़ी आसानी से अपने बिलों तक पहुंच जाती हैं। रास्ता न भूलने के पीछे कारण यह बताया जाता है कि ये अपने बिल से दूर जाते समय एक विशेष प्रकार की रासायनिक गंध छोड़ती जाती हैं, जिसके जरिये ये आसानी से बिल तक वापस पहुंच जाती हैं।
विशाल समूहों में एक साथ चलने के बाद भी चींटियां बहुत अनुशासित होकर चलती हैं। इस संबंध में हार्वर्ड के मशहूर जीवविज्ञानी ई.ओ. विल्सन का कहना है कि जब चींटियां कई-कई मीटर लंबी कतारों में चलती हैं तो कुछ ऊंचाई से उन्हें देखने पर उनकी अनुशासित फौज किसी हाईवे पर ट्रैफिक के समान नजर आती है। चींटियों द्वारा आपस में यह तालमेल बनाने के संबंध में विल्सन बताते हैं कि रास्ते पर आगे चलती चींटियां थोड़ा सा संकेतक रसायन छोड़ती जाती हैं, जिसे फेरोमोन कहते हैं जबकि शेष चींटियां इस संकेत को पकड़कर उसी रास्ते पर चलती जाती हैं।
विल्सन ने शोध के दौरान यह जानने की भी कोशिश की कि क्या चींटियों की इस आवाजाही के दौरान ट्रैफिक जाम भी होता है। उन्होंने पाया कि हम इंसानों के मामले में भले ही आए दिन कहीं न कहीं ट्रैफिक जाम की स्थिति लगातार बनी रहती हो किन्तु चींटियों के साथ ऐसा नहीं होता क्योंकि उनमें गजब का ट्रैफिक सेंस होता है और वे भीड़भाड़ की स्थिति में भी ट्रैफिक जाम नहीं होने देती। विल्सन बताते हैं कि किसी भी मार्ग पर कुछ चींटियां धीमी चाल से चलती हैं तो कुछ तेज गति से चलती हैं और कुछ बहुत ही तेज रफ्तार से चलती हैं किन्तु जब ट्रैफिक का घनत्व बढ़ता है तो धीमी गति से चलने वाली चींटियां थोड़ी तेज चलने लगती हैं और तेज गति से चलने वाली चींटियां अपनी रफ्तार कुछ कम कर देती हैं।
नन्हीं-नन्हीं दिखने वाली इन चींटियों के जबड़े बहुत मजबूत होते हैं, जिनकी मदद से ये भोजन को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर खा जाती हैं। चींटियां हालांकि सर्वभक्षी होती हैं लेकिन अधिकांश प्रजाति की चींटियां मांसाहारी होती हैं, जो बिना रीढ़ वाले छोटे-बड़े कीड़ों को मारकर खा जाती हैं। यहां तक कि ये काॅकरोच, छिपकली तक को मारकर खा जाती हैं। हां, एक विशेष प्रजाति की चींटियां पूर्ण शाकाहारी होती हैं, जो एक खास तरह की फंगस (फफूंद) का भोजन करती हैं। ये पेड़ों की पत्तियों को कुतरने के लिए जानी जाती हैं। ये चींटियां चींटियों की रहस्यमयी दुनिया में ‘किसान’ की भूमिका निभाती हैं। ये पत्तियों के टुकड़े कर-करके उन्हें बिल में ले जाती हैं, जिनमें कुछ दिनों बाद फंगस उग आती है। इसी फंगस से ये चींटियां भोजन प्राप्त करती रहती हैं।
दक्षिण अफ्रीका में चींटियों की एक प्रजाति को ‘बुनकर चींटियां’ कहा जाता है, जो पेड़ों पर अपनी बांबी बनाती हैं। ये एक कुशल बुनकर की भांति पेड़ की पत्तियों को अपनी लार से उत्पन्न होने वाले सिल्क के धागे से सिलती हैं, जो एक लिफाफे की तरह बन जाता है, जिसमें रानी चींटी रहती है। दक्षिण अमेरिका, दक्षिण एशिया, मध्य अफ्रीका इत्यादि कुछ स्थानों पर चींटियों की ऐसी प्रजातियां भी पाई जाती हैं, जो बहुत खूंखार और आक्रामक होती हैं। ताकतवर चींटियां कमजोर चींटियों पर अक्सर हावी होती हैं ओर उन्हें उनके बिलों से खदेड़कर उन पर अपना कब्जा कर लेती हैं। कुछ प्रजाति की चींटियां ऐसी भी होती हैं, जो किसी भी प्रकार के खतरे का आभास होते ही अपने शरीर के पिछले हिस्से से बदबूदार रासायनिक द्रव्य छोड़ती हैं। (एम सी एन)

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