सक्सेस मंत्र

परीक्षा से भय कैसा!
. योगेश कुमार गोयल (मीडिया केयर नेटवर्क)

प्रायः जनवरी-फरवरी माह में छात्र-छात्राएं खेलकूद व मौजमस्ती छोड़कर अपनी वार्षिक परीक्षाओं की तैयारी में जुट जाते हैं। बहुत से छात्रों को तो वार्षिक परीक्षा के नाम से ही कड़ाके की ठंड में भी पसीने छूटने लगते हैं। दरअसल यही वह समय होता है, जब उनकी सालभर की पढ़ाई का मूल्यांकन होना होता है, इसी परीक्षा की बदौलत उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए आधार मिलता है। हर साल फरवरी-मार्च के महीने में 10वीं, 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं होती हैं। कुछ छात्र तो इन परीक्षाओं की तैयारी में रात-दिन इस कदर जुट जाते हैं कि उन्हें खाने-पीने तक की सुध नहीं रहती। कई बार तो स्थिति यह हो जाती है कि खानपान के मामले में निरंतर लापरवाही बरतने के कारण स्वास्थ्य गिरता जाता है, जिसका सीधा प्रभाव उनकी स्मरण शक्ति पर पड़ता है और नतीजा, परीक्षा की भरपूर तैयारी के बावजूद उन्हें आशातीत सफलता नहीं मिल पाती। विशाल शर्मा के साथ भी 12वीं की परीक्षा में यही हुआ।
विशाल बहुत होनहार छात्र था और पूरे जोर-शोर से परीक्षा की तैयारी में जुटा था। पढ़ाई में वह इस कदर मग्न था कि उसे खाने-पीने का भी ध्यान न रहता। परिणामस्वरूप उसका स्वास्थ्य गिरता गया और परीक्षा के दिनों में वह बीमार पड़ गया। बीमारी में ही उसे परीक्षा देनी पड़ी और शारीरिक व मानसिक अस्वस्थता की दशा में वह याद किए गए प्रश्नों के उत्तर भी भूल गया। इसका परिणाम यह रहा कि वह बामुश्किल फेल होते-होते बचा और कामचलाऊ अंकों से ही परीक्षा उत्तीर्ण कर सका।
कहने का तात्पर्य यह है कि परीक्षा के दिनों में खूब मन लगाकर पढ़ाई करना और कड़ी मेहनत करना तो जरूरी है ही लेकिन पढ़ाई के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है क्योंकि अगर आपका शरीर ही स्वस्थ नहीं होगा तो आप परीक्षा की तैयारी बेहतर ढ़ंग से मन लगाकर कैसे कर पाएंगे? परीक्षा में सफलता-असफलता को लेकर भी बहुत से छात्र तनावग्रस्त हो जाते हैं और उनके मन में परीक्षा नजदीक आते ही बेचैनी सी छा जाती है। दरअसल ऐसे छात्र सालभर का समय तो मौजमस्ती में ही गुजार देते हैं और जब परीक्षाएं नजदीक आती हैं तो उन्हें हौव्वा मानकर घबराने लगते हैं। इसके अलावा समय सारिणी बनाकर नियमित अध्ययन न करना भी उनके तनावग्रस्त होने का प्रमुख कारण होता है।
कुछ छात्र परीक्षा की तैयारी के लिए अपना कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पाते और लक्ष्य निर्धारित न होने के कारण एकाग्रचित्त होकर परीक्षा की तैयारी नहीं कर पाते। ऐसे में परीक्षा को लेकर उनका चिंतित और तनावग्रस्त होना स्वाभाविक ही है किन्तु परीक्षा के दिनों में जरूरत से ज्यादा तनावग्रस्त रहना निश्चित रूप से हानिकारक साबित होता है। तनावग्रस्त रहने के कारण लाख कोशिशों के बाद भी पढ़ाई में उनका मन नहीं लग पाता। अतः यह बेहद जरूरी है कि आप शुरू से ही पढ़ाई के प्रति रूचि बनाए रखें, अपना लक्ष्य निर्धारित करें ताकि ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न ही न होने पाएं, जिनके कारण परीक्षा को हौव्वा मानकर आपको तनावग्रस्त रहना पड़े।
वही छात्र परीक्षाओं को हौव्वा मानते हैं, जो सालभर तो मौजमस्ती करते घूमते फिरते हैं और ठीक परीक्षा के मौके पर उन्हें किताबों की सुध आती है। तब उन्हें समझ ही नहीं आता कि परीक्षा की तैयारी कैसे और कहां से शुरू की जाए। इसी हड़बड़ी तथा तनाव के चलते वे परीक्षा में पिछड़ जाते हैं। यदि आपने सालभर नियमित रूप से मन लगाकर पढ़ाई की है तो कोई कारण नहीं, जो परीक्षा से आपको किसी प्रकार का भय सताए।
अगर आप समय सारिणी बनाकर अध्ययन-मनन करें तो कठिन से कठिन हर विषय भी आपको आसानी से समझ में आ सकता है लेकिन समय सारिणी बनाते समय इसमें सिर्फ अपने मनपसंद विषय को ही वरीयता न दें बल्कि सभी विषयों पर बराबर ध्यान देने का प्रयास करें बल्कि जिस विषय में आप स्वयं को कमजोर पाते हैं, उस पर कुछ ज्यादा ध्यान केन्द्रित करें। घर का वातावरण तथा अभिभावकों की सजगता भी परीक्षा में छात्रों की सफलता-असफलता का निर्धारण करने में अहम भूमिका निभाती है। यदि आप परीक्षा के खौफ से मुक्त होकर मन लगाकर परीक्षा की तैयारी करें तो निश्चित रूप से सफलता आपके कदम चूमेगी। (एम सी एन)

Comments

Popular posts from this blog

तपती धरती और प्रकृति का बढ़ता प्रकोप

पंखों वाली गाय !