जीव जंतुओं की अनोखी दुनिया-44




सबसे उग्र मछली ‘ब्लू फिश’
भूमध्य रेखा से कर्क रेखा तथा मकर रेखा के निकटवर्ती समुद्रों में पाई जाने वाली शारीरिक रूप से बलिष्ठ ‘ब्लू फिश’ दुनिया की सबसे उग्र मछली मानी जाती है। इस मछली के शंक्वाकार दांत बेहद नुकीले और मजबूत होते हैं। गहरे समुद्र में विशाल समूहों में रहने वाली ये मछलियां अन्य मछलियों तथा समुद्रफेनी का भोजन करती हैं। ये कितनी खतरनाक और उग्र प्रवृत्ति की मछलियां हैं, इसका अनुमान आप इसी से लगा सकते हैं कि गहरे पानी के भीतर ये छोटी मछलियों के समूहों पर इस प्रकार धावा बोलती हैं कि उनके पूरे-पूरे समूह का नामोनिशान तक मिट जाता है और वहां बच जाता है उन मछलियों के पूरे समूह की हड्डियों का ढ़ेर। हर साल ये ब्लूफिश करीब सवा अरब मछलियों को अपना भोजन बना डालती हैं। मछुआरे इन मछलियों को हर साल बहुत बड़ी तादाद में पकड़ते हैं किन्तु कई बार ये मछलियां अपने नुकीले तेज दांतों से मछुआरे के जाल को भी काट डालती हैं। ब्लूफिश प्रायः अमेरिका के तटवर्ती क्षेत्रों में तो बहुतायत मेें पाई जाती हैं, जो विशाल समूहों में गहरे समुद्र में रहती हैं और केवल गर्मियों में ही तटीय क्षेत्रों के छिछले पानी में आ जाती हैं। ब्लूफिश बहुत तेज गति से तैरने में सक्षम होती है, यहां तक कि इसके छोटे बच्चे भी तेज गति से तैरने में सक्षम होते हैं और बहुत छोटे-छोटे बच्चों के भी पूर्ण विकसित तीखे दांत होते हैं। (एम सी एन)
खतरा भांपते ही शरीर गुब्बारे की तरह फुला लेती है ‘पफ्फर’ मछली
भारतीय महासागर में पूर्वी अफ्रीका के तट से लेकर आस्ट्रेलिया तक तथा प्रशांत महासागर में हवाई से लेकर जापान तक पाई जाने वाली पफ्फर मछली मछलियों की एक ऐसी विशेष प्रजाति है, जो जरा सा खतरे का आभास होते ही अपने शरीर को पफ्फ कर लेती है यानी गुब्बारे की तरह फुला लेती है और इसकी इसी विशेषता के कारण ही इस मछली को ‘पफ्फर’ के नाम से जाना जाता है। इसके शरीर पर छोटे-छोटे कांटे होते हैं, जो इसका शरीर फूलते ही खड़े हो जाते हैं। अपने शरीर को गुब्बारे की भांति फुलाने की क्रिया पफ्फर मछली अत्यधिक मात्रा में पानी पीकर करती है। टोड मछली, टोबीज तथा फूगू मछली इसी प्रजाति में आने वाली मछलियां हैं। हालांकि पफ्फर मछलियों को विश्व के कई भागों और खासकर जापान में बड़े चाव से खाया जाता है लेकिन इस मछली के शरीर के कई अंग जैसे जिगर, आंतें, रक्त इत्यादि बेहद विषैले होते हैं, जिसके कारण हर साल जापान में कई लोग इस मछली के सेवन के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं। इस मछली का विष मनुष्य के शरीर में जाने के बाद उसके स्नायुतंत्र को निष्क्रिय बना सकता है, जिससे व्यक्ति को पक्षाघात भी हो सकता है और इस विष का प्रभाव खत्म करने वाली कोई दवाई भी अब तक नहीं बनी है। यही वजह है कि इस मछली को केवल विशेषज्ञ बावर्ची ही पका सकते हैं। (एम सी एन)
मछुआरों के लिए सोने के अण्डे के समान होती है ‘पोरक्यूपाइन’ मछली
हिन्द महासागर, प्रशांत महासागर तथा अटलांटिक महासागर के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली ‘पोरक्यूपाइन’ मछली एक प्रकार की साही मछली ही है, जो पफ्फर मछली के परिवार से ही संबंध रखती है। साही की तरह ही इसके शरीर पर मौजूद कंटीले स्केल्स के कारण ही इस मछली का नाम पोरक्यूपाइन (साही) मछली पड़ा। इसके शरीर पर मौजूद ये कांटे हालांकि शरीर के साथ सटे हुए होते हैं मगर खतरा भांपते ही जब यह मछली अपने शरीर को फुलाती है तो ये कांटे भी सुरक्षा कवच की तरह खड़े हो जाते हैं। पफ्फर मछली की ही भांति यह मछली भी अपने शरीर को फुलाने की क्षमता रखती है। पोरक्यूपाइन मछली का छोटा सा चोंचनुमा मुंह होता है। दरअसल इसके दोनों जबड़ों के दांत आपस में जुड़े होते हैं, जो इस चोंच की तरह दिखते हैं। घोंघे, केकड़े, अर्चिन्स आदि इस मछली का पसंदीदा भोजन हैं और इन जीवों को खाने में यह कठोर चोंच इसकी बहुत मददगार साबित होती है। अगर किसी मछुआरे के जाल में कोई शरीर फुलाए हुए पोरक्यूपाइन मछली उस अवस्था में फंस जाए, जब उसके शरीर पर कांटे खड़े हों तो यह उसके लिए सोने के अण्डे के समान बेशकीमती साबित होती है। दरअसल ऐसी मछली को मछुआरों को मुंहमांगी कीमत मिल जाती है। (एम सी एन)

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